कुछ न कुछ करते रहिये यां जमे रहने के लिए ,
इस जद्दोजहद में ख़ुद के ठने रहने के लिए !!
यहाँ कोई ना लेगा भाई आपको हाथो-हाथ ,
बहुत जर्फ़ चाहिए आपके खरे रहने के लिए !!
इन्किलाब न कीजै रहिये मगर आदमी से ,
रूह का होना जरुरी है अपने रहने के लिए !!
सब मुन्तजिर हैं कि मिरे लब खुले कब ,
कुछ बात तो हो मगर मेरे कहने के लिए !!
इस दुनिया से इन्किलाब की उम्मीद न करो,
मर रहे सब लोग यां अपने जीने के लिए !!
हम झगडों के कायल हैं ना अमन के खिलाफ,
कुछ आसमां हो कबूतरों के उड़ने के लिए !!
हम रहना चाहते हैं सबसे मुहब्बत के साथ ,
कोई तैयार ही नहीं है प्यार करने के लिए !!
जो कर रहे हो तुम उसके सिला की सोचो ,
नदिया बही जा रही है बस बहने के लिए !!
पशोपेश में है"गाफिल"क्या करे ना करे ,
क्या य जगह बची है हमारे रहने के लिए !!
15.10.08
कुछ ना कुछ करते रहिये !!
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2 comments:
Ham jhagadon ke kaayal hain na aman ke khilaaf,
kuchh aasman ho kabootaron ke udne ke liye.
Bhai Bhootnathji,bahut khoob.Achhi baat hai aur aapkaa sher laajawaab hai.
Badhaai
Maqool
kya khub likha hai sir, Manoj Dwivedi ki badhai sweekar karen.
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