देवताओं ने पहले ईश्वर को ढूंढा
या ईश्वर ने देवताओं को
आदमी की समझ में यह कभी नहीं आया
या दोनों ने मिलकर आदमी को ढूंढा
आदमी यह भी पता नहीं लगा पाया
और ईश्वर को ढूंढने में लगा रहा।
देवताओं को आदमी की जरूरत ज्यादा है
या ईश्वर को या फिर दोनों को
आदमी के लिए यह परीक्षण पाप बराबर रहा
और उसने अपनी जरूरत बना लिए देवता और ईश्वर।
नाती-पोतों ने आदमी को खूब समझाया
खूब तर्क दिए पर सिरफिरा आदमी ढूंढता रहा ईश्वर
और पीढ़ियां होती चली गयीं अभिशप्त।
तिराहे-चौराहे मुस्कराता हुआ
खड़ा मिलता है ईश्वर
आदमी रोते हुओं की पहचान
करने में होता रहता है खुश
हमेशा से ईश्वर गले लगा रहा है
हंसते हुए आदमी को और
रोते हुए उसके दरबार के बाहर
जाने कब से खड़े हैं लाइन में।
पंक्तिबद्ध लोग लामबंद होना चाहते हैं
पम्फलेट बंटवाना चाहते हैं-
ईश्वर को समझने में गलती मत करिए
ईश्वर को जरूरत है आदमी की, पर हंसते हुए आदमी की
पुरखों ने कैसी गलतियां की हैं
ईश्वर को समझने में।।
पवन निशान्त
http://yameradarrlautega.blogspot.com
20.10.08
ईश्वर को समझने में
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1 comment:
ishwar! khan ho tum
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