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मनोज कुमार राठौर
हमारे देश में दीवाली का त्यौहार बडे़ धूमधाम से मनाया जाता है। बाजार में अनुमान से कहीं अधिक व्यवसाय होता है। मंदी के इस दौर में भी अरबों का कारोबार किया जा रहा है, लेकिन मंदी की गाज अमीरों पर नहीं गिरी, शायद दीवाली मनाने का हक उन्हे ही है। गरीबों का दीवाला निकल रहा है।
जहां एक ओर बाजार में सोना, चांदी, दो पहिया वाहन, इलेक्ट्राॅनिक सामान, कपड़ा, पटाखे, क्राकरी, फर्नीचर और सजावटी सामान के अलावा प्रापर्टी की खरीदी हो रही है। दूसरी ओर किसी ने यह अंदाजा लगाया है कि यह खरीदी कौन कर रहा है? कोई आम आदमी तो यह खरीदी नहीं कर सकता है क्योकि वह दिन भर मजदूरी करता है जब जाकर उसका पेट भरता है। ऐसे में वह दीवाली कैसे मनाऐगां ? बस वह आसमान की आतिषबाजी को देखकर संतुष्ट हो सकता है। बाजारों में मिष्ठान भंडारों में तरह-तरह की मिठाईयां सजी होती है, बस वह उसकों एक नजर देखकर अपना जी भर लेगा। नये कपड़ों का सपना सजाए मन में वह उसकी कल्पना ही कर सकता है। गरीब व्यक्ति जब दिन भर काम कर अपना पेट पालता है तो वह दीवाली की इस चकाचैंद को कैसे पूरा कर पाएगा ? अब आप भी यह समझ गए होगें की दीपावी किस का त्यौहार है।
मध्यप्रदेष में स्थित गंजबासौदा निवासी एक परिवार ने आर्थिक तंगी के परेशान होकर जहर खा लिया। परिवार में छः सदस्य थे सभी की मौके पर ही मौत हो गई। ऐसे ही कई उदाहरण है जिसमें लोग आर्थिक तंगी के चलते अपने परिवार का पालन-पोषण नहीं कर पाते हैं और उनके सामने आखिरी रास्ता मौत का बचता है। इस आर्थिक मंदी के चलते एक आम आदमी दीवाली कैसे मनाऐगा ? लोग कहते है कि लक्ष्मी की पूजा करने से घर में धन की बरसात होती है। पर गरीब को तो अपने पेट पालने के लाले पढ़े हैं ऐसे में वह क्या पूजा पाठ करेगा? दीवाली तो मानो धन का त्यौहार है। जिसके पास धन उसी की दीवाली। जिसके पास धन नहीं उसका दीवाला।www.parkhinazar.blogspot.com
27.10.08
अमीरों की दीवाली, गरीबों का दीवाला
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