किसका विरोध?
सुबह जब अखबार देखा तो पाया की पूरा बिहार बंदी और आगजनी की चपेट में है। मुख्यमंत्री की मार्मिक अपील के बावजूद लोगों का आक्रोश कम नही हो रहा। यह स्वाभाविक भी है। मगर इस नकचढ़ी गुंडागर्दी के ख़िलाफ़ अपने राज्य को ही आग में झोंक देना कहाँ की समझदारी है !!! आम रेल यात्रिओं और नागरिकों को बंधक बना देने की यह प्रवृत्ति क्या 'उन्ही महानुभाव' से प्रभावित नहीं है जिनका ये विरोध (!) कर रहे हैं ? ऐसा कर न सिर्फ़ वे देश के संसाधनों का नुक्सान कर रहे हैं बल्कि यह बिहार की छवि को और भी धुंधला ही बनाएगी। रेल मंत्रालय को भी चाहिए की वो अपनी पूर्व चेतावनी को ध्यान में रखते हुए मुंबई को परीक्षा केन्द्र न बनाये और आंदोलनकारी भी अपना विरोध संविधानिक ढंग से रखें। वैसे भी देश में न्यायपालिका के दरवाजे आम आदमी के लिए बंद नही हुए हैं।
2 comments:
es desh me virodh karnay ka adhikar sab ko hai . lekin ismay hinsa ka koi sthan nahi hai.
sahmat hun aapose. yahi baat to sabhi tak pahunchani hai.
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