Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

20.10.08

ठाकरे को फांसी दो

सभ्य समाज में किसी को खुलेआम फांसी दिए जाने की वकालत नही की जा सकती। लेकिन जहाँ सभ्यता की सीमा टूटे , तो उसकी वज़ह को जड़ से मिटाना जरुरी होता है। महारास्ट्र में यही हो रहा है। महारास्ट्र नवनिर्माण सेना के गठन के बाद से ही राज ठाकरे अपने क्रियाकलापों से मानवता को शर्मसार करते आ रहे हैं । कभी उनके निशाने पर मुंबई में रोजाना ऑटो टैक्सी चलाकर गुज़रवसर करने वाले उत्तर भारतीय आ जाते हैं, तो कभी हिन्दी बोलने पर राज की गुंडा सेना के लोग किसी की भी पिटाई कर देते हैं। और तो और लोक आस्था के पर्व छट करने वाले बिहारिओं को देख लेने की धमकी देते हैं।
पर, अब तो हद हो गई रोजगार की तलाश में रेलवे की परीक्षा देने गए वेरोजगार छात्रों की पिटाई राज के गुंडों ने कर दी।घर से दूर एक उम्मीद के साथ बाहर गए छात्रों के दिल पर क्या बीती होगी , ये राज जैसा स्वार्थी शख्स नही समझ सकता । उसे सिर्फ़ राजनीति से मतलब है। भले ही उसकी राजनीति देश को बांटती हो।
मेरी नज़र में ऐसे किसी भी शख्स को खुलेआम फांसी दे देनी चाहिये जो अपने स्वार्थ के लिए देश को बाँटने की साजिश करे।

No comments: