मुंबई में उत्तर भारतियों पर बढ़ते हमलों के बीच एक सवाल, आखिर किसकी है मुंबई ? हिन्दुस्तान की, महाराष्ट्र की, या फिर ठाकरे परिवार की ? मुंबा देवी के इस नगरी को किसकी नज़र लग गयी। किसने घोल दिया इतना जहर ?
देश में कहीं भी आने-जाने, रहने का संवैधानिक अधिकार सभी को प्राप्त हैं। फिर यह आरजकता क्यों ? कानून व्यवस्था को धत्ता बताते हुए, बार-बार मुंबई में उत्तर भारतियों पर हमले हो रहे हैं। "मराठी मानुष" और "हिन्दी भाषी" के बीच एक नफ़रत कि खाईं आ गयी हैं। नफ़रत के गरम आँच पर सियासतदानों ने राजनितिक रोटी सेंकनी शुरू कर दी हैं। मुंबई से शुरु हुई यह आग पटना के रास्ते दिल्ली तक आ गयी। और शायद यह आग आगे भी अपना रंग दिखायेगी।
मुंबई में नफ़रत के गुंडागर्दी में मुख्यत: सब्जी भाजी वाले, ढूध वाले, इस्त्री वाले, आटा चक्की वाले, भेल पुरी वाले,टैक्सी ऑटो वाले पिस रहे हैं। ये छोटे मोटे काम धंधों में लगे हुए कर्मठ लोग हैं। ये असंगठित हैं, इसिलिये निशाने पर हैं। मुंबई महानगर वाणिज्यिक एवं मनोरंजन केन्द्र होने के कारण काम खोजने वालों की खान बन चुकि हैं। लेकिन इनमे सिर्फ़ "भैया' लोग ही नही होते। रेलों में ठुंसकर स्वप्ननगरी आने वालों में केरल, बंगाल, गुजरात और पूरे देश के लोग होते हैं। लेकिन निशाने पर उत्तर भारतीय ही हैं, क्योंकि वे बदनाम ज्यादा हैं। मुंबई के विकास और उसे भारत की आर्थिक राजधानी बनाने में बिहार और उत्तरप्रदेश के लोगों का भी खून पसीना लगा है। ठाकरे परिवार इस बात को भूल रहा है कि आर्थिक राजधानी होने के कारण मुंबई में सभी को रोजगार पाने और वहां आने-जाने का संवैधानिक अधिकार है।
वक्त आ गया हैं कि राजनिती को "राज"निती से अलग किया जाये। राज ठाकरे को आगे बढ़ाने में कांग्रेस पार्टी का हाथ हैं। शिवसेना को रोकने के लिये कांग्रेस ने राज ठाकरे की "राज"निती को बढावा दिया हैं। राजनितीक दलों को तुष्टिकरण की नित्ती त्यागनी होगी। सियासतदानों को अपने इलाके में रोजगार के अवसर देने होंगें, ताकि उत्तर भारतियों को मुंबई की ख़ाक छानने न आना परे। और यह देश के सामाजिक ताने-वाने के लिए जरूरी हैं।
भूमंडलीकरण के इस दौर में, जब पूरी दुनिया एक गाँव बन गयी हैं, तब "मराठी मानुष" और "हिन्दी भाषी" की बात करना बेमानी हैं। जरूरत हैं देश को जोड़ने की, ना कि तोड़ने की। मुंबई न तो "मराठी मानुष" की हैं और न "हिन्दी भाषी" भैया लोगों की। मुंबई मेरी हैं, आपकी हैं, हम सब की हैं। मुंबई पूरे हिन्दुस्तान की जान हैं।
by: सुमीत के झा (sumit k jha)
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30.10.08
मुंबई मेरी जान ! आखिर किसकी ?
Posted by सुमीत के झा (Sumit K Jha)
Labels: मुंबई, सुमीत के झा
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