(पिंकी उपाध्याय)
अनाश शनाप शुल्क की वसूली
सिवनी वर्ष 2010-11 नया शिक्षण सत्र प्रांरभ हो रहा है और नये सत्र के प्रांरभ होते ही अशासकीय शिक्षण संस्थाओं मे लोभ लुभावने वाले प्रलोभन शुरू हो गये है। यही नही इन संंस्थाओं में अनाप शनाप शुल्क भी वसूली की जा रही है। यह सब सरेआम चल रहा है और इस ओर किसी प्रकार से शिक्षा विभाग द्घारा ध्यान ना दिया जाना चिंतनीय है। हालांकि यह भी अब अच्छा माना जाने लगा है कि शासकीय शिक्षण संस्थाओं एंव अशासकीय शिक्षण संस्थाओं में प्रश्र पत्रो के मूल्यांकन व परिणाम की घोषणा तथा परीक्षा अपने स्तर से लेना सुनिश्चित कर दिया गया है। जिससे जो प्रतियोगिता देखी जा रही थी वह कम हो रही है। यह भी कि शासकीय शिक्षण संस्थाओं में निशुल्क गणवेश,पाठ्य पुस्तकें, जूते मोजे, साईकिल व शिक्षण शुल्क की सुविधा है इस सुविधा की वजह से शासकीय स्कुलो में बच्चो की दर्ज संख्या बढ गई है। मध्यान्ह भोजन की सुविधा भी अलग से दी जा रही है दूसरी ओर अशासकीय शिक्षण संस्थाओं भी अलग से दी जा रही है दूसरी ओर अशासकीय शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश शुल्क के अलावा, मासिक शुल्क तथा अन्य शुल्क भी वसूली जाती है। यह क्रम वर्षो से चल रहा है। जिसकी वजह से कई अशासकीय स्कुल संचालको द्घारा बिल्डिंगे बना ली गई है व अन्य सम्पत्ति भी अर्जित कर ली गई है। वैसे प्रायवेट में पढाना सामान्य परिवार के बस की बात नही रह गई है। इस संबंध में कई अभिभावको ने चर्चा में कहा कि वे अपने बच्चो को अच्छा पढाकर आगे बढ़ाना चाहते है परंतु जिस तरह से अशासकीय स्कुलों में फीस ली जा रही है वह उनके बस की बात नही रह गई है। दरअसल प्रायवेट शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश शुल्क की अनाप शनाप वसूली होती है रही सही कसर विविध नाम से मासिक शुल्क के रूप में वसूली हो रही है। जिसमें ग्रीष्मकालीन अवकाश वाले माह की भी शुल्क वसूली जाती है। जिसकी वसूली कितनी न्यायसंगत है यह तो शिक्षा विभाग ही जाने पर अभिभावको की जेब पर अवश्य डाका डाल रहे हैा चूंकि किसी भी शुल्क के लिये पारदर्शिता होना चाहिए और उसे सूचना बोर्ड मे चस्पा किया जाना चाहिए। परंतु अशासकीय संस्थाओं में शुल्क को लेकर कोई पारदर्शिता नही है और ना ही सूचना बोर्ड पर ऐसा कोई वितरण उल्लेखित है दूसरी ओर गली कूचो में अशासकीय स्कुले प्रांरभ हो गई है। जहां पर ना तो बैठक व्यवस्था है बावजूद बेरोकटोक उक्त संस्थायें चल रही है। शिक्षा विभाग के संरक्षण में उक्त खेल चल रहा कहे तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। अन्यथा प्रायवेट संस्थाओं के क्रियाकलापो पर शिक्षा विभाग का अंकुश अवश्य होता। बहरहाल नया शिक्षण सत्र कल 1 जुलाई से प्रारंभ हो रहा है और प्रवेश के लिये प्रायवेट स्कुल में संचालक व शिक्षकगण घर-घर दस्तक देने लगे है।
मूलभूत सुविधाओं से वंछित
खासतौर से नर्सरी से प्रांरभ होने वाले स्कूलों की गुणवत्ता जांच का विषय है छोटे बच्चों के लिये पर्याप्त बैठक व्यवस्था,खेल मैदान,पेयजल ,प्रकाश,शौचालय की मूलभूत सुविधा भी अधिकांश निजी स्कूलों में नही है। किराये के भवनों में संचालित होते ऐसे स्कूल केवल संचालकों के लिय आय का साधन बने हुए है।
इनका कहना है....
मुझे यहां की वस्तुस्थिति की जानकारी नही मै मेरा स्थानातंरण अभी हुआ है जानकारी प्राप्त होने के बाद ही कोई कार्यवाही की जायेगी ।
टीसी पटले
जिला शिक्षा अधिकारी
सिवनी वर्ष 2010-11 नया शिक्षण सत्र प्रांरभ हो रहा है और नये सत्र के प्रांरभ होते ही अशासकीय शिक्षण संस्थाओं मे लोभ लुभावने वाले प्रलोभन शुरू हो गये है। यही नही इन संंस्थाओं में अनाप शनाप शुल्क भी वसूली की जा रही है। यह सब सरेआम चल रहा है और इस ओर किसी प्रकार से शिक्षा विभाग द्घारा ध्यान ना दिया जाना चिंतनीय है। हालांकि यह भी अब अच्छा माना जाने लगा है कि शासकीय शिक्षण संस्थाओं एंव अशासकीय शिक्षण संस्थाओं में प्रश्र पत्रो के मूल्यांकन व परिणाम की घोषणा तथा परीक्षा अपने स्तर से लेना सुनिश्चित कर दिया गया है। जिससे जो प्रतियोगिता देखी जा रही थी वह कम हो रही है। यह भी कि शासकीय शिक्षण संस्थाओं में निशुल्क गणवेश,पाठ्य पुस्तकें, जूते मोजे, साईकिल व शिक्षण शुल्क की सुविधा है इस सुविधा की वजह से शासकीय स्कुलो में बच्चो की दर्ज संख्या बढ गई है। मध्यान्ह भोजन की सुविधा भी अलग से दी जा रही है दूसरी ओर अशासकीय शिक्षण संस्थाओं भी अलग से दी जा रही है दूसरी ओर अशासकीय शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश शुल्क के अलावा, मासिक शुल्क तथा अन्य शुल्क भी वसूली जाती है। यह क्रम वर्षो से चल रहा है। जिसकी वजह से कई अशासकीय स्कुल संचालको द्घारा बिल्डिंगे बना ली गई है व अन्य सम्पत्ति भी अर्जित कर ली गई है। वैसे प्रायवेट में पढाना सामान्य परिवार के बस की बात नही रह गई है। इस संबंध में कई अभिभावको ने चर्चा में कहा कि वे अपने बच्चो को अच्छा पढाकर आगे बढ़ाना चाहते है परंतु जिस तरह से अशासकीय स्कुलों में फीस ली जा रही है वह उनके बस की बात नही रह गई है। दरअसल प्रायवेट शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश शुल्क की अनाप शनाप वसूली होती है रही सही कसर विविध नाम से मासिक शुल्क के रूप में वसूली हो रही है। जिसमें ग्रीष्मकालीन अवकाश वाले माह की भी शुल्क वसूली जाती है। जिसकी वसूली कितनी न्यायसंगत है यह तो शिक्षा विभाग ही जाने पर अभिभावको की जेब पर अवश्य डाका डाल रहे हैा चूंकि किसी भी शुल्क के लिये पारदर्शिता होना चाहिए और उसे सूचना बोर्ड मे चस्पा किया जाना चाहिए। परंतु अशासकीय संस्थाओं में शुल्क को लेकर कोई पारदर्शिता नही है और ना ही सूचना बोर्ड पर ऐसा कोई वितरण उल्लेखित है दूसरी ओर गली कूचो में अशासकीय स्कुले प्रांरभ हो गई है। जहां पर ना तो बैठक व्यवस्था है बावजूद बेरोकटोक उक्त संस्थायें चल रही है। शिक्षा विभाग के संरक्षण में उक्त खेल चल रहा कहे तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। अन्यथा प्रायवेट संस्थाओं के क्रियाकलापो पर शिक्षा विभाग का अंकुश अवश्य होता। बहरहाल नया शिक्षण सत्र कल 1 जुलाई से प्रारंभ हो रहा है और प्रवेश के लिये प्रायवेट स्कुल में संचालक व शिक्षकगण घर-घर दस्तक देने लगे है।
मूलभूत सुविधाओं से वंछित
खासतौर से नर्सरी से प्रांरभ होने वाले स्कूलों की गुणवत्ता जांच का विषय है छोटे बच्चों के लिये पर्याप्त बैठक व्यवस्था,खेल मैदान,पेयजल ,प्रकाश,शौचालय की मूलभूत सुविधा भी अधिकांश निजी स्कूलों में नही है। किराये के भवनों में संचालित होते ऐसे स्कूल केवल संचालकों के लिय आय का साधन बने हुए है।
इनका कहना है....
मुझे यहां की वस्तुस्थिति की जानकारी नही मै मेरा स्थानातंरण अभी हुआ है जानकारी प्राप्त होने के बाद ही कोई कार्यवाही की जायेगी ।
टीसी पटले
जिला शिक्षा अधिकारी
तीन-चार सौ रूपयों मे हो रहा देश का निर्माण
प्राईवेट स्कूल उडा रहे शिक्षकों का माखौल
सिवनी । गुरूगोविंद दोउ खडे काके लागूँ पाय इस पंक्ति ने जहाँ गुरू को प्रभु से भी ऊँचे स्थान पर बिठाया है। वहीं वर्तमान परिवेश में भारत के भाग्यविधाता कहे जाने वाले गुरूओं की गुरूदीक्षा महज तीन-चार सौ रूपया आँकी जा रही है। जबकि मिट्ïटी खोदने वाला श्रमिक भी तकरीबन २००० हजार रूपये मासिक आय कमा लेता है। तीन-चार सौ रूपये में कैसे भारत का निर्माण हो पाएगा? तीन-चार सौ रूपये में देश के भविष्य का निर्माण किया जा रहा है। शहर में चल रही प्राईवेट संस्थाएँ अपने अध्यापकों को मात्र तीन-चार सौ रूपये देकर अध्यापन का कार्य करवा रही है।
आज जहाँ शासकीय विधाओं में एक शिक्षक को तीन सौ से चार सौ रूपये प्रिितदिन का पारिश्रमिक दिया जा रहा है। वहीं प्राईवेट संस्थाएं देश का भविष्य मामूली तनख्वाह देकर निर्मित कर रही है। देश का भविष्य बच्चे हैं। तथा बच्चों को उचित शिक्षा से देश का उज्जवल भविष्य बनता है। पर शायद यह भविष्य बनाने वालों का प्राईवेट स्कूलों में शोषण हो रहा है। यह संस्थाएँ बच्चों से तो भारी फीस की माँग करती है और शिक्षकों को मात्र तीन सौ से चार सौ रूपये प्रतिमाह थमाकर अपना व्यापार फैला रही है। आखिर कब तक करती रहेगी प्राईवेट संस्थाएँ इन शिक्षकों का शोषण ?
प्राईवेट स्कूल उडा रहे शिक्षकों का माखौल
सिवनी । गुरूगोविंद दोउ खडे काके लागूँ पाय इस पंक्ति ने जहाँ गुरू को प्रभु से भी ऊँचे स्थान पर बिठाया है। वहीं वर्तमान परिवेश में भारत के भाग्यविधाता कहे जाने वाले गुरूओं की गुरूदीक्षा महज तीन-चार सौ रूपया आँकी जा रही है। जबकि मिट्ïटी खोदने वाला श्रमिक भी तकरीबन २००० हजार रूपये मासिक आय कमा लेता है। तीन-चार सौ रूपये में कैसे भारत का निर्माण हो पाएगा? तीन-चार सौ रूपये में देश के भविष्य का निर्माण किया जा रहा है। शहर में चल रही प्राईवेट संस्थाएँ अपने अध्यापकों को मात्र तीन-चार सौ रूपये देकर अध्यापन का कार्य करवा रही है।
आज जहाँ शासकीय विधाओं में एक शिक्षक को तीन सौ से चार सौ रूपये प्रिितदिन का पारिश्रमिक दिया जा रहा है। वहीं प्राईवेट संस्थाएं देश का भविष्य मामूली तनख्वाह देकर निर्मित कर रही है। देश का भविष्य बच्चे हैं। तथा बच्चों को उचित शिक्षा से देश का उज्जवल भविष्य बनता है। पर शायद यह भविष्य बनाने वालों का प्राईवेट स्कूलों में शोषण हो रहा है। यह संस्थाएँ बच्चों से तो भारी फीस की माँग करती है और शिक्षकों को मात्र तीन सौ से चार सौ रूपये प्रतिमाह थमाकर अपना व्यापार फैला रही है। आखिर कब तक करती रहेगी प्राईवेट संस्थाएँ इन शिक्षकों का शोषण ?
2 comments:
esi sikcha se to bhikcha bhi nahi milegi
esi sikhcha se to bhikcha bhi nahi milegi
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