एक दिन
जब सड़ी हवा में सांस लेने से
आदमी डरेगा नहीं।
एक दिन
जब पेट भरने के लिए
आदमी कुछ करेगा नहीं।।
एक दिन
जब रोज रोज की दौड भाग से
परेशान शख्श जल्दी नहीं जागेगा।
एक दिन
जब छोटा बड़ा काम करके भी
बाबू रिश्वत नहीं मांगेगा।।
एक दिनजब
फूल दुर्गन्ध् के लिए नहीं
महक के लिए विख्यात होंगे।
एक दिन
जब अंजाने नाम भी प्रेमचंद और
रविन्द्र नाथ से प्रख्यात होंगे।।
एक दिन
जब धरती पत्थर नहीं
सोना उगाएगी।
एक दिन जब विरहनी
संयोग के गीत गायेगी।।
एक दिन
जब मशीन और आदमी
की प्रतिद्वंदिता नहीं होगी।
एक दिनजब नई पीढ़ी में विचारों
की स्वच्छंदता नहीं होगी।।
एक दिन
जब बादल बिजली की जगह
सोना बरसाएंगे।।
एक दिन
जब हम-तुम तालाब में
नंगे नहाएगें।।
एक दिन
जब कबूतरों को बाज
नहीं डराएगा।
एक दिन
जब राजनेता सिर्फ रोटियां खाएगा।।
एक दिन
जब अफसरों को कुर्सियां
नहीं होगीं।
एक दिन
जब दफ्तरों में तख्तियां नहीं होगी।।
एक दिन
जब रात दिन से नहीं डरेगी।
एक दिन
जब जिन्दगी के फैसले खाप नहीं करेगी।।
एक दिन
जब आस्तीन के सापों का
डर नहीं होगा।।
एक दिन
जब न्यायालय में डाकू का
घर नहीं होगा।।
एक दिन
जब प्रधनमंत्री आवास में गेट
नहीं होगें।
एक दिन
जब मजदूरों पर घौस जमाते
घन्ना सेठ नही होंगे।।
एक दिन
जब अहसानों को हम
उम्र भर नहीं भूलेंगें।
एक दिन
जब फेल हुए बच्चे
फांसी पर नहीं झूलेंगे ।।
एक दिन
जब सबके बच्चे घी
और रोटी खाएगें।
एक दिन
जब हम कसाब को फांसी पर लटकाएगें।।
एक दिन
जब पेडों से आंसू नहीं झरेंगे।
एक दिन
जब ग्लेशियर नहीं गलेंगें।।
एक दिन
जब नेता अपने गांव
लौट कर आएगा।
एक दिन
जब वोटर बिन दारू के
वोट डालने जाएगा।।
एक दिन
जब न्याय पैसे से न
तौला जाएगा।
एक दिन
जब मजदूर भरपेट
रोटियां खाएगा।।
शायद उस दिन
हम इंसान से आदमी बन जाएंगे।
शायद उस दिन
हम अपने संस्कार कर्मों में दिखलायेंगे।।
शायद उस दिन देश में
राम राज्य आ जाए।
शायद उस दिन
कोई देवता इस देश को चलाए।।
शायद.....
18.7.10
एक दिन शायद
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1 comment:
मेरे दोस्त माफ करना वो ऐसा दिन कभी नहीं आयेगा। क्या यह हमारा सपना रहेगा। हमें पता नहीं।
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