देहरादून में अपनो ने ही बिछाया 'निशंक' को घेरने के लिए जाल
उत्तराखंड के मुख्य मंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल 'निशंक' बुधवार को राजधानी दिल्ली में केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में जीएसटी पर आयोजित बैठक में शामिल होने आए थे। केंद्र की इस प्रस्तावित कर प्रणाली जीएसटी का मुख्यमंत्री ने विरोध किया है। मुख्यमंत्री का था कि इससे राज्यो की स्वायत्ता खत्म हो जाएगी। राज्यों का अपनी वित्तीय आवश्यकताओ के अनुरूप टैक्स लगाने व उसे कम या अधिक करने का अधिकार समाप्त हो जाएगा। विशेष श्रेणी का राज्य होने के चलते उत्तराखंड को जीएसटी प्रणाली मे उत्तर पूर्वी राज्यो के समान ही सहूलियत दी जाएं। डा. निशंक केंद्र की प्रस्तावित कर प्रणाली जीएसटी की कमियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए पत्रकारों को बता रहे थी कि पहले से ही राज्यो के पास वित्तीय संसाधन अपर्याप्त है, जीएसटी के लागू होने से राज्य सरकारे पूरी तरह से केंद्र पर निर्भर हो जाएंगी। केंद्र सरकार राज्यो को होने वाले नुकसान की भरपाई पांच वर्ष तक करने की बात कह रही है। जबकि पांच वर्ष बाद भी हानि मे रहने वाले राज्यो को केंद्र किस रूप मे क्षतिपूर्ति करेगा, यह स्पष्ट नही है। वैसे भी वैट से होने वाले नुकसान की भरपाई केंद्र अभी तक नही कर पाया है। मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से जीएसटी के क्रियान्वयन का स्पष्ट रोडमैप राज्यो के समक्ष रखने की मांग करते हुए कहा कि अगले वर्ष एक अप्रैल से प्रस्तावित जीएसटी को किस प्रकार लागू किया जाएगा व आर्थिक दृष्टि से कमजोर राज्यो को किस प्रकार सहायता दी जाएगी पहले यह स्पष्ट किया जाएं। यही नहीं एल्कोहलिक पेय, पेट्रोलियम पदार्थ एवं तंबाकू उत्पादो पर आरोपित होने वाला बिक्री कर जीएसटी प्रणाली मे किस प्रकार समाहित होगा।
उत्तराखंड का जिक्र करते हुए डा. निशंक ने कहा कि राज्य निर्माण के समय हमारा कर संग्रह 165 करोड़ रुपए था जो मौजूदा समय मे लगभग 3000 करोड़ रुपए हो गया है। हमारे यहां पर्यटन, जलविद्युत, वन सम्पदा, जड़ी-बूटियां व खनन में अपार संभावनाएं है। इससे राज्य सरकार को आने वाले वर्षों मे बड़ी मात्र मे राजस्व आय प्राप्त हो सकती है। लेकिन केंद्र के इस जीएसटी प्रस्ताव लागू किए जाने से उत्तराखंड सरकार की राजस्व आय की सम्भावनाओं पर पड़ने वाले प्रभाव के मद्देनजर केंद्र सरकार से विशेष पैकेज दिए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के लिए विशेष औद्योगिक पैकेज वर्ष 2013 तक के लिए स्वीकृत किया गया था जिसे कि बाद में अन्यायपूर्ण तरीके से घटाकर 2010 तक कर दिया गया। इस पैकेज के तहत दी जाने वाली कर रियायते दस वर्ष तक लागू होने के चलते राज्य के कर आधार का आंकलन किया जाना कठिन है। उन्होंने जीएसटी को लागू करने मे केंद्र सरकार से जल्दबाजी न करने का आग्रह करते हुए कहा कि पहले राज्य सरकारों की सभी आशंकाओं को दूर किया जाए। उन्होंने कहा कि जीएसटी को केंद्र व राज्य दो स्तरो पर लागू किया जाना है जिसके चलते व्यापारियो को दो-दो जगह हिसाब देना पड़ेगा। जिसकी प्रक्रिया जटिल हो जाएगी। इसलिए केंद्र को इस ओर भी ध्यान देना होगा।
दिल्ली में मुख्यमंत्री उत्तराखंड राज्य की चिंताओं के साथ केंद्र से मुखातिब थे। ताकि राज्य के विकास में किसी तरह से बाधा न पैदा हो। लेकिन दूसरी मुख्यमंत्री निशंक के दिल्ली प्रवास के दौरान देहरादून में उन्हीं के पार्टी के कुछ माननीयों को पत्रकारों और कुछ टीवी चैनलों पर निशंक के खिलाफ जाल विछाने का खुला मौका मिल गया। तभी तो पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को 'उत्तराखंड में समुह 'ग' के पदों पर भर्ती और 25 मेगावाट तक की हाइड्रो परियोजनाओं के आवटंन की प्रक्रिया को सरकार द्वारा रद्द किए जाने पर' खूब प्रतिक्रिया देते देखे गए। यही नहीं ख़बर तो पुखता तौर पर अब ये हैं कि इन वरिष्ठों के माध्यम से निशंक को हर हाल में किसी भी किमत पर किसी न किसी मामले में फसाने की भूमिका तय की जा चुकी हैं,जिसमें डॉ.निशंक के खुद की इर्द-गिर्द और निशंक की नज़रों में खुद को उनका अपने दिखने वाले कुछ चेहरों को भी इनके माध्यम से शामिल किया गया है। जो पल-पल की जानकारी इन तक पहूंचा ही रहे है। ऐसा नहीं होता तो,कौन नहीं जानता था की ऋषिकेश के चर्चित स्टर्डिया फैक्ट्री का मामला है पूर्व खंण्डूड़ी सरकार का निर्णय था। इस समूचे प्रकरण में पूर्व मुख्यमंत्री तथा भाजपा के ही एक प्रदेश सह प्रभारी की भूमिका प्रथम दृष्टया सामने आयी थी। फिर चर्चा ये हुई कि यह पूरा मामला राजनीति से प्रेरित है। जहां तक वर्तमान मुख्यमंत्री के इस मामले में हस्तक्षेप की बात की जाय तो उन्होंने इस मामले के संज्ञान में आते ही निर्माण कार्य पर रोक लगाने के आदेश काफी पहले ही जारी कर दिये हैं। जिस पर शासन ने अमल करा दिया है। इसके बाबजूद इस मामले के पेपर एक दिन के अंदर मीडिया में कैसे बांटे गए। यह बात डॉ.निशंक अच्छी तरह जानते है। लेकिन उन्होंने अपने आदरणीयों का सम्मान करते हुए। इस मामले में कभी भी किसी व्यक्ति विशेष का नाम कभी नहीं लिया। जहां तक उत्तराखंड के बिरोजगार युवाओं के लिए समुह ग की भर्ती का सवाला हैं तो इसमें भी अब ये वरिष्ठगण अपनी टांग फंसा रहे हैं,और विपक्ष के साथ-साथ इन्होंने भी रागअलापना शुरु कर दिया हैं कि यह सब तो सरकार खुद के फ्यादे के लिए कर रही है। अब यह तो भविष्य तय करेगा की फ्याद सरकार का होता हैं कि उत्तराखंड के नौजवानों का।
यहां सवाला यह उठता हैं कि आखिर निशंक से उन्हीं की पार्टी के वरिष्ठ क्यों डर रहे है? कहीं इन्हें ऐसा आभास तो नहीं हो रहा हैं कि अब आने वाला कल भी इसी युवा पीढ़ी के हाथों में जाने वाला है। क्योंकि जिस तरह से डॉ.निशंक एक बाद एक इन पूर्व वरिष्ठों के कारनामों की पोल खोलते जा रहे हैं,उससे इन्हें खुद की मट्टी पलीत होती नज़र आ रही है। उत्तराखंड की जनता के सामने इनका काला चेहरा साफ दिखायी दे रहा हैं। जिससे घबरा कर इन वरिष्ठों ने अब देहरादून से ऋषिकेश तक अपने कुछ पत्रकार मेहमानों के साथ मिकलर निशंक को फंसाने के लिए जाल बिछाना शुरू कर दिया। ख़बर तो यह भी सतप्रतिशत सत्य हैं कि कुछ अपने कार्यकर्ताओं को नोट बाटे जा रहे है...ताकि पूरे उत्तराखंड में बह रही निशंक नाम की लहर को रोका जाएं। लेकिन यह शायद भूल गये हैं कि डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक खुद एक प्रखर पत्रकार और कवि हैं। उन्हें हर ख़बर के पिछे की सच्चाई पता ही नहीं बल्कि उसकी हेडलाइन की जानकारी भी है। बस अब इंतजार इस बात का हैं कि डॉं.निशंक अपनी कलम से कब इन जाल बिछाने वालों और स्टिंग की रणनीति बनाने वालों के खिलाफ कुछ कर दिखाने का सहास दिखाते है। क्योंकि अब बहुत हो चुका है....उन्हें विकास के साथ आगे बढ़ना हैं....और जो पत्थर उनकी रहा में आड़े आ रहे हैं...उन्हें हर हाल में...उख़ाड कर फेंकना है।
आज़ाद
उत्तराखंड का जिक्र करते हुए डा. निशंक ने कहा कि राज्य निर्माण के समय हमारा कर संग्रह 165 करोड़ रुपए था जो मौजूदा समय मे लगभग 3000 करोड़ रुपए हो गया है। हमारे यहां पर्यटन, जलविद्युत, वन सम्पदा, जड़ी-बूटियां व खनन में अपार संभावनाएं है। इससे राज्य सरकार को आने वाले वर्षों मे बड़ी मात्र मे राजस्व आय प्राप्त हो सकती है। लेकिन केंद्र के इस जीएसटी प्रस्ताव लागू किए जाने से उत्तराखंड सरकार की राजस्व आय की सम्भावनाओं पर पड़ने वाले प्रभाव के मद्देनजर केंद्र सरकार से विशेष पैकेज दिए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के लिए विशेष औद्योगिक पैकेज वर्ष 2013 तक के लिए स्वीकृत किया गया था जिसे कि बाद में अन्यायपूर्ण तरीके से घटाकर 2010 तक कर दिया गया। इस पैकेज के तहत दी जाने वाली कर रियायते दस वर्ष तक लागू होने के चलते राज्य के कर आधार का आंकलन किया जाना कठिन है। उन्होंने जीएसटी को लागू करने मे केंद्र सरकार से जल्दबाजी न करने का आग्रह करते हुए कहा कि पहले राज्य सरकारों की सभी आशंकाओं को दूर किया जाए। उन्होंने कहा कि जीएसटी को केंद्र व राज्य दो स्तरो पर लागू किया जाना है जिसके चलते व्यापारियो को दो-दो जगह हिसाब देना पड़ेगा। जिसकी प्रक्रिया जटिल हो जाएगी। इसलिए केंद्र को इस ओर भी ध्यान देना होगा।
दिल्ली में मुख्यमंत्री उत्तराखंड राज्य की चिंताओं के साथ केंद्र से मुखातिब थे। ताकि राज्य के विकास में किसी तरह से बाधा न पैदा हो। लेकिन दूसरी मुख्यमंत्री निशंक के दिल्ली प्रवास के दौरान देहरादून में उन्हीं के पार्टी के कुछ माननीयों को पत्रकारों और कुछ टीवी चैनलों पर निशंक के खिलाफ जाल विछाने का खुला मौका मिल गया। तभी तो पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को 'उत्तराखंड में समुह 'ग' के पदों पर भर्ती और 25 मेगावाट तक की हाइड्रो परियोजनाओं के आवटंन की प्रक्रिया को सरकार द्वारा रद्द किए जाने पर' खूब प्रतिक्रिया देते देखे गए। यही नहीं ख़बर तो पुखता तौर पर अब ये हैं कि इन वरिष्ठों के माध्यम से निशंक को हर हाल में किसी भी किमत पर किसी न किसी मामले में फसाने की भूमिका तय की जा चुकी हैं,जिसमें डॉ.निशंक के खुद की इर्द-गिर्द और निशंक की नज़रों में खुद को उनका अपने दिखने वाले कुछ चेहरों को भी इनके माध्यम से शामिल किया गया है। जो पल-पल की जानकारी इन तक पहूंचा ही रहे है। ऐसा नहीं होता तो,कौन नहीं जानता था की ऋषिकेश के चर्चित स्टर्डिया फैक्ट्री का मामला है पूर्व खंण्डूड़ी सरकार का निर्णय था। इस समूचे प्रकरण में पूर्व मुख्यमंत्री तथा भाजपा के ही एक प्रदेश सह प्रभारी की भूमिका प्रथम दृष्टया सामने आयी थी। फिर चर्चा ये हुई कि यह पूरा मामला राजनीति से प्रेरित है। जहां तक वर्तमान मुख्यमंत्री के इस मामले में हस्तक्षेप की बात की जाय तो उन्होंने इस मामले के संज्ञान में आते ही निर्माण कार्य पर रोक लगाने के आदेश काफी पहले ही जारी कर दिये हैं। जिस पर शासन ने अमल करा दिया है। इसके बाबजूद इस मामले के पेपर एक दिन के अंदर मीडिया में कैसे बांटे गए। यह बात डॉ.निशंक अच्छी तरह जानते है। लेकिन उन्होंने अपने आदरणीयों का सम्मान करते हुए। इस मामले में कभी भी किसी व्यक्ति विशेष का नाम कभी नहीं लिया। जहां तक उत्तराखंड के बिरोजगार युवाओं के लिए समुह ग की भर्ती का सवाला हैं तो इसमें भी अब ये वरिष्ठगण अपनी टांग फंसा रहे हैं,और विपक्ष के साथ-साथ इन्होंने भी रागअलापना शुरु कर दिया हैं कि यह सब तो सरकार खुद के फ्यादे के लिए कर रही है। अब यह तो भविष्य तय करेगा की फ्याद सरकार का होता हैं कि उत्तराखंड के नौजवानों का।
यहां सवाला यह उठता हैं कि आखिर निशंक से उन्हीं की पार्टी के वरिष्ठ क्यों डर रहे है? कहीं इन्हें ऐसा आभास तो नहीं हो रहा हैं कि अब आने वाला कल भी इसी युवा पीढ़ी के हाथों में जाने वाला है। क्योंकि जिस तरह से डॉ.निशंक एक बाद एक इन पूर्व वरिष्ठों के कारनामों की पोल खोलते जा रहे हैं,उससे इन्हें खुद की मट्टी पलीत होती नज़र आ रही है। उत्तराखंड की जनता के सामने इनका काला चेहरा साफ दिखायी दे रहा हैं। जिससे घबरा कर इन वरिष्ठों ने अब देहरादून से ऋषिकेश तक अपने कुछ पत्रकार मेहमानों के साथ मिकलर निशंक को फंसाने के लिए जाल बिछाना शुरू कर दिया। ख़बर तो यह भी सतप्रतिशत सत्य हैं कि कुछ अपने कार्यकर्ताओं को नोट बाटे जा रहे है...ताकि पूरे उत्तराखंड में बह रही निशंक नाम की लहर को रोका जाएं। लेकिन यह शायद भूल गये हैं कि डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक खुद एक प्रखर पत्रकार और कवि हैं। उन्हें हर ख़बर के पिछे की सच्चाई पता ही नहीं बल्कि उसकी हेडलाइन की जानकारी भी है। बस अब इंतजार इस बात का हैं कि डॉं.निशंक अपनी कलम से कब इन जाल बिछाने वालों और स्टिंग की रणनीति बनाने वालों के खिलाफ कुछ कर दिखाने का सहास दिखाते है। क्योंकि अब बहुत हो चुका है....उन्हें विकास के साथ आगे बढ़ना हैं....और जो पत्थर उनकी रहा में आड़े आ रहे हैं...उन्हें हर हाल में...उख़ाड कर फेंकना है।
आज़ाद
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