अब उत्तराखंड में किसी भी लेखक की मूर्धन्य कृति नहीं रहेगी अप्रकाशित- डॉ.निशंक
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने मूर्धन्य साहित्यकार, लेखक, कवियों जो धनाभाव के कारण अपनी कृति प्रकाशित नहीं कर पाते हैं, को प्रकाशन के लिए आर्थिक सहायता दिये जाने की योजना स्वीकृति कर दी है। इस योजना के संचालन से अब धनाभाव के कारण कोई पुस्तक अप्रकाशित नही रहेगी और लोगों को मूर्धन्य साहित्यकारों व लेखकों के अनुभव का लाभ सीधे मिलेगा। इस योजना के तहत 2 लाख रुपये तक की स्वीकृति संस्कृति निदेशालय एवं इससे अधिक सहायता वाले प्रकरण में विद्वतजनों की समिति की संस्तुति पर प्रशासन द्वारा दी जायेगी। निदेशक संस्कृति की अध्यक्षता में गठित विषय विशेषज्ञों की इस समिति में गढ़वाल एवं कुमाऊं विश्वविद्यालय के ऐसे विषय विशेषज्ञ नामित होंगे, जो लोक संस्कृति, साहित्य की विधा के होंगे। ज्ञातव्य है कि मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ स्वयं एक साहित्यकार हैं। वे लेखक-कवियों और संस्कृति कर्मियों के श्रम को भली भांति जानते हैं। उन्होंने साहित्यकारों के जीवन परिवेश को करीब से देखा है और अनुभव किया है, कि इनकी लेखनी से सामाजिक चेतना को नई दिशा दी जा सकती है। फिर ये तो जहजाहिर है डा. निशंक राज्य की समृद्ध संस्कृति के सदैव प्रोत्साहन के पक्षधर रहे हैं। शायद यही वजह भी हैं कि उत्तराखंड में ऐसा पहली बार हुआ है कि,सरकार द्वारा संस्कृति के संरक्षण एवं संवद्र्धन हेतु अनेक योजनाएं संचालित की गई हैं। यह योजनाएं संस्कृति के संरक्षण एवं संवद्र्धन हेतु मील का पत्थर साबित भी हो रही। जिसके श्रेय निश्चित तौर पर डॉ.निशंक को जाता है। अब पुस्तक प्रकाशन की योजना को शुरू कर डॉ.निशंक ने यह साफ कर दिया है कि साहित्य के उन्नयन की दूरद्रष्टि से अब कोई भी जनोपयोगी कृति धनाभाव के कारण अप्रकाशित नहीं रहेगी। इस योजना के अन्तर्गत चयनित साहित्यकार को कृति की 10 प्रतियां संस्कृति निदेशालय का जमा करनी होगी। प्रकाशित कृति पर स्वत्वाधिकार संस्कृति विभाग का होगा। बाजार की मांग पर पुस्तक के मूल्य निर्धारित का अधिकार संस्कृति विभाग का होगा तथा ऐसी स्थिति में लेखक को रायल्टी भी दी जायेगी। इस योजना के अनुसार संस्कृति के प्रचार प्रसार एवं संबद्र्धन हेतु दूरदराज की संस्कृति पर आधारित कृतियों को प्रकाशन में प्राथमिकता दी जायेगी।
यकीकन अब वह दिन दूर नहीं जब उत्तराखंड के इतिहास में साहित्य-संस्कृति से लेकर लोक कलाओं तक को इस विशाल कालखंड के रूप में दुनिया देख पायेगी...दुनिया के सामने उत्तराखंड के लेखक अपने सांस्कृति परिवेश के श्रेष्ठतम् परारूप को लाकर,दुनिया को बता पायेगें कि हमें क्यों देवभूमि के परिभाष दी गयी है और इसके लिए श्रेष्यकर होगें...डॉ.रमेश पोखरिया 'निशंक'।
- जगमोहन 'आज़ाद'
30.7.10
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2 comments:
इस सार्थक प्रयास के लियें में डा. रमेश पोखरियाल जी की प्रसंशा करना चाहूँगा .
उनका यह आर्थिक प्रयास काफी हद तक मददगार साबित होगा. और दुआ करूंगा की इस योजना के तहत जो भी राशि आये उसका इन साहित्यकारों एवं लेखको को भरपूर लाभ मिले.
और हाँ एक गुजारिश भी करना चाहूँगा की अगर हमारे श्रीमान मुख्यमंत्री जी हमारी कला संस्कृति को भी कुछ प्रोत्साहन दे तो आखिर इतनी कलाएं और ढेर सारी संस्कृति होने के बावजूद हम अपनी संस्कृति को उजागर क्यों नहीं कर पा रहे है...
मेरा एक अनुरोध है अगर हम अपनी संस्कृति के संचार प्रसार के लियें मीडिया को एक माध्यम बनाएं कहने से तात्पर्य है की अगर हम अपना एक राष्ट्रीय चैनल प्रारंभ करें तो क्या इससें हमारी उत्तराखंड की संस्कृति उजागर नहीं होगी अपितु इससें जन जन में हमारी संस्कृति को नया रूप मिलेगा.हमारी संस्कृति ही हमारा स्वरुप है.
धन्यवाद
जय उत्तराखंड
जय भारत
इस सार्थक प्रयास के लियें में डा. रमेश पोखरियाल जी की प्रसंशा करना चाहूँगा .
उनका यह आर्थिक प्रयास काफी हद तक मददगार साबित होगा. और दुआ करूंगा की इस योजना के तहत जो भी राशि आये उसका इन साहित्यकारों एवं लेखको को भरपूर लाभ मिले.
और हाँ एक गुजारिश भी करना चाहूँगा की अगर हमारे श्रीमान मुख्यमंत्री जी हमारी कला संस्कृति को भी कुछ प्रोत्साहन दे तो आखिर इतनी कलाएं और ढेर सारी संस्कृति होने के बावजूद हम अपनी संस्कृति को उजागर क्यों नहीं कर पा रहे है...
मेरा एक अनुरोध है अगर हम अपनी संस्कृति के संचार प्रसार के लियें मीडिया को एक माध्यम बनाएं कहने से तात्पर्य है की अगर हम अपना एक राष्ट्रीय चैनल प्रारंभ करें तो क्या इससें हमारी उत्तराखंड की संस्कृति उजागर नहीं होगी अपितु इससें जन जन में हमारी संस्कृति को नया रूप मिलेगा.हमारी संस्कृति ही हमारा स्वरुप है.
धन्यवाद
जय उत्तराखंड
जय भारत
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