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16.7.10

उत्तर प्रदेश के फरुखाबाद , कानपुर देहात , ओरैया, सह्जहंपुर में एक के बाद एक सरकारी प्राथमिक स्कूलों में दलित रसोइयों द्वारा बनाये गए मिड- डे मिल का बहिष्कार करना दुर्भाग्य पूर्ण और चिंताजनक भी है. ऐसा लग रहा है मानो २१ वीं सदी के भारत में छुआछूत नाम की नयी खुजली वाली बीमारी घर कर रही हो जो कुछ दिनों पहले थोड़ी मध्यम हुई थी .........वो नयी बीमारी के रूप में घर करती जा रही है . अब ये समझाना कठिन होगा की इस तरह के मामले क्यों सामने आते है , क्योंकि विदालयों में दलित रसोइये मिड डे मिल पकाने और परोसने काम पहले से चलता आ रहा है , और इसके पहले उनके बहिष्कार का मामला एक अभियान की शकल में कभी सामने नहीं आया . चिंताजनक करने वाली एक बात और है एक के बाद एक सरकारी स्कूलों में बच्चो ने दलित रसोइये द्वारा तैयार मिड डे मिल कहने से इनकार कर दिया बल्कि ये भी है की बच्चो के अभिभावकों द्वारा आपति जताई गयी है इससे सर्मिन्दा ही हो सकते है की बच्चो को इसके लिए उकसाया जा रहा है , की वे दलित रशोइए द्वारा बनाये गए मिड- डे मिल को खाने से इनकार करे . यह ठीक है की मिड - डे मिल खाने के लिए किसी को जबरन विवस नहीं किया जा सकता है , की वर्ग विशेष द्वारा बनाये गए भोजन को न खाए , लेकिन जो लोग भी ऐसा कर रहे है उन्हें झकझोरना आवश्यक है , यह कार्य प्रशासन के साथ समाज को भी करना चाहिए , क्योंकि जब भी मामले सामने आते है , तब समाज की ही बदनामी होती है , इसकी भी जांच होनी चाहिए की अचानक दलित द्वारा तैयार किये गए मिड- डे मिल का बहिष्कार क्यों किया गया ? कही ऐसा तो नहीं की मिड - डे मिल की आड़ में राजनितिक स्वार्थों की पूर्ति तो नहीं की जा रही है या इसके पीछे उन लोगो को तो हाथ नहीं जो दलित रसोइये की नौकरी को जबरन हासिल करना चाहते है ? वास्तु स्थिति जो भी हो , राज्य सर्कार को कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे स्कूलों के भीतर पठन - पठान का के माहौल बेहतर हो सके

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