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30.7.10

...ऐसे तो ब्रिटेन के म्यूजियम खाली हो जाएंगे

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन अपनी पहली दो दिवसीय यात्रा पर भारत आए। सुना है कि ब्रिटेन को फांके पड़ रहे हैं। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था बदहाल है। प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की इस यात्रा मुख्य उद्देश्य ब्रिटेन की डूबती नैया के लिए सहारा जुटाना था। कैमरन भारत के साथ व्यापार बढ़ाना चाहते हैं और 600 अरब रुपए के सौदे को भुनाने की ताक में थे।  जिसमें उन्हें कामयाबी हासिल हुई।
         चलिए शीर्षक से जुड़े विषय पर आते हैं। कैमरन ने एक अंग्रेजी खबरिया चैनल को साक्षात्कार दिया है। साक्षात्कार में डेविड कैमरन उस वक्त सोच में पड़ गए, जब साक्षात्कारकर्ता ने उनसे प्रश्न किया - 'भारत सरकार यदि ब्रिटेन से कोहिनूर मांगता है तो क्या ब्रिटिश सरकार कोहिनूर दे सकेगी?' प्रश्न सुनते ही जेम्स टेंशन में आ गए और सोच-विचारने वाली मुद्रा में बैठ गए। थोड़ी देर बाद बोले - 'यह तो संभव नहीं है, क्योंकि एक के लिए हां बोला तो ब्रिटेन का सारा म्यूजियम खाली हो जाएंगा।' उन्होंने ठीक ही कहा था, कहने से पहले सोचा भी था न। वैसे तो यह मुद्दे से इतर जाने का अच्छा जवाब था, लेकिन बहुत कुछ सच तो इसमें भी छुपा था। वो यूं कि, कैमरन का कहना था, यदि वह एक कोहिनूर को वापस करने के लिए हां बोलते है तो हो सकता है कि एक-एक कर सारी लूटी हुई वस्तुओं की मांग भारत करने लगे, फिर तो ब्रिटेन के  सारे म्यूजियम खाली होने ही हैं। क्योंकि ब्रिटेन के म्यूजियम लूटी हुई चीजों से ही भरे और सजे पड़े हैं। दो सौ साल बहुत होते हैं किसी देश को लूटने के लिए। ब्रिटेन  व्यापार का बहाना लेकर इस देश में घुसा और फिर धीमे-धीमे उसने लूटमार मचाना शुरू किया जो करीब दो सौ साल चला। उसी दो सौ साल में जो कुछ लूटा उसमें से आंशिक ही हिस्सा है जो ब्रिटेन के म्यूजियमों की शोभा बढ़ा रहा है। बाकी का बहुत सारा हिस्सा तो कहां, किस ब्रिटश कंपनी के अफसर के पेट में और अन्य जगह खप गया होगा पता नहीं।
          इतना ही नहीं सवाल और जवाब के बीच उन्होंने यह भी सोच लिया होगा कि अगर ब्रिटेन भारत के लिए हां करता है तो बाकि के वे देश भी तो अपनी चीजें वापस मांग सकते हैं, जो कभी अत्याचारी ब्रिटिश उपनिवेश के गुलाम हुआ करते थे। इस तंगहाली के दौर में अगर सबने अपनी-अपनी चीजें मांगनी शुरू कर दीं तो ब्रिटेन नंगा हो जाएगा।
इससे शायद महोदय पी. चिदंबरम की आंखे खुलें
    इस मामले से मुझे याद आया कि अक्टूबर 2007 में पी. चिदंबरम ने कहा था कि भारत तो कभी सोने की चिडिय़ा रहा ही नहीं। वे उस समय वित्त मंत्री हुआ करते थे। मुझे उस समय चिदंबरम की बुद्धि पर बड़ा आश्चर्य हुआ था कि पता नहीं इतना बड़ा सच पी. चिदंबरम साहब कहां से खोज लाए हैं? बचपन से तो हम यही पढ़ते आ रहे थे कि इस देश में अकूत संपदा थी जिसे समय-समय पर लुटेरों ने लूट लिया। हाथी, घोड़ों और ऊंटों पर लादकर ले गए। इतना ही नहीं कई आक्रांताओं ने तो बार-बार लूट मचाई। चिदंबरम द्वारा उद्घाटित यह सच तो उन वामपंथियों बुद्धिजीवियों और इतिहासकारों की नजरों से भी औझल रहा, जो समय-बेसमय भारत को दीन-हीन और असभ्य बताते रहे हैं। चिदंबरम साहब को उस वक्त मैंने अपने शहर के एक प्रतिष्ठित अखबार में पत्र संपादक के नाम पत्र लिखकर पूछा था कि .....
- अगर भारत गरीब और कंगाल था तो क्यों विभिन्न आक्रांताओं ने इस देश पर बार-बार आक्रमण किया?
- क्यों बाबर (एक अत्याचारी जिसके तथाकथित मकबरे के लिए इस देश में खूब खून बहा है और राजनीति हुई है और हो री है। इतना ही नहीं इस देश के कई लोगों ने इस लुटेरे को अपना आदर्श बना रखा है।), तैमूर लंग और मुहम्मद गजनी, मुहम्मद गौरी आदि ने भारत में लूट मचाई?
- भारत गरीब था तो क्यों ईस्ट इंडिया कंपनी यहां व्यापार के लिए आई और नंगो-भिखारियों के देश में दो सौ साल तक क्या करती रही?
         इन सवालों की गूंज पी. चिदंबरम के कानों तक तो उस समय न पहुंची होगी, लेकिन उम्मीद करता हूं कैमरन ने जो कहा उस पर तो उन्होंने गौर किया ही होगा। आखिर महाशय भारत के गृह मंत्री हैं।

2 comments:

Asha Joglekar said...

अगर भारत गरीब और कंगाल था तो क्यों विभिन्न आक्रांताओं ने इस देश पर बार-बार आक्रमण किया?
- क्यों बाबर (एक अत्याचारी जिसके तथाकथित मकबरे के लिए इस देश में खूब खून बहा है और राजनीति हुई है और हो री है। इतना ही नहीं इस देश के कई लोगों ने इस लुटेरे को अपना आदर्श बना रखा है।), तैमूर लंग और मुहम्मद गजनी, मुहम्मद गौरी आदि ने भारत में लूट मचाई?
- भारत गरीब था तो क्यों ईस्ट इंडिया कंपनी यहां व्यापार के लिए आई और नंगो-भिखारियों के देश में दो सौ साल तक क्या करती रही?
इन सवालों की गूंज पी. चिदंबरम के कानों तक तो उस समय न पहुंची होगी, लेकिन उम्मीद करता हूं कैमरन ने जो कहा उस पर तो उन्होंने गौर किया ही होगा। आखिर महाशय भारत के गृह मंत्री हैं।
वाकई विचारणीय बात है । इतिहास भरा पडा है इस लूट की बातों से ।

डॉ० डंडा लखनवी said...

महत्वपूर्ण जानकारी के लिए साधुवाद! तथ्य कुछ और भी हैं-
प्राय: ऐतिहासिक विवेचना करते समय हमारी दृष्टि संकीर्ण हुआ करती है। ईशाइयत के जनक ईशा और इस्लाम के जनक मोहम्मद साहब के पूर्व योरोप से अनेक आक्रामक बारबार यहाँ आए थे। यहाँ की संस्कॄति को उन्होंने नष्ट किया। मूल निवासियों को गुलाम बनाया। रोटी-बेटी का रिस्ता कायम किया। योरोप वासियों की यह लूट और भी लम्बे समय तक चलती रहती यदि इस्लाम के उदय न हुआ होता। इस्लाम के उदय कारण मध्य एशिया का थल-मार्ग योरोप वासियों के लिए बंद हो गया। उस समय भारत की सीमाएं मद्य एशिया तक विस्तृत थीं। फलत: योरोप वासियों को भारत तक पहुंचने के लिए जल-मार्ग खोजना पड़ा। बाद में समुद्री मार्ग से दक्षिण के रास्ते भारत में वे आरे-जाते रहे। नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों में के पुस्तकायॊं में संचित ज्ञान को आग के हवाले किसने किया? आर्यों से पूर्व और विकसित द्रविण संस्कॄति भारत में विद्यमान थी। आखि़र द्रविण कहां चले गए? "भारत की खोज" में पं० जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है, आर्य मध्य एशिया के रास्ते भारत में आए थे। इतिहास के गर्भ में ठगों और लुटेरों के प्रकरण भरे पड़े हैं। जिनकी विवेचना नि:पक्ष ढ़ंग से किए जाने की आवश्यकता है।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी