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26.7.10

गांधी तेरे देश में-ब्रज की दुनिया

 गांधी तेरे देश में,

घूम रहे आज हर जगह

डाकू संत के वेश में;

गांधी तेरे देश में.

खुल रही नई दुकानें

शराब की हर रोज यहाँ,

बढती है आमदनी इससे

बनी सरकारी सोंच यहाँ;

दौड़ रहा मानव

बेतहाशा पैसे की रेस में;

गांधी तेरे देश में.

हो रहा है रोज घोटाला,

भूमिचोरी,फर्जीवाड़े से केवाला;

मुश्किल हुआ निकलना घर से,

छोड़ रही पढाई ललनाएं

बलात्कारियों के डर से;

रो रही हैं भारतमाता

टूटे गृह अवशेष में;

गांधी तेरे देश में.

थाना बना बथाना

मंदिर बना दुकान,

दफ्तर दक्जनी का अड्डा

अस्पताल श्मशान;

लूट रहे लुटेरे जनता को

अफसर-डाक्टर के वेश में;

गांधी तेरे देश में.

लड़ रही जनता आपस में

हुआ विखंडित आज समाज,

रो रही अहिंसा उपेक्षित

कहाँ है तुम्हारा रामराज;

धनलोलुप बैठे हैं कुंडली मारे

पत्रिकाओं और प्रेस में;

गांधी तेरे देश में.

न्याय का मंदिर

दुकान बन गया,

भ्रष्टाचार इसकी पहचान बन गया;

खून करना शान बन गया

अपशब्द पुलिसिया जबान बन गया;

जाने क्या ईन्सान बन गया;

ले-देकर हो रहा है निर्णय

हर मुकदमा हर केस में;

गांधी तेरे देश में.

3 comments:

Unknown said...

इस कविता की जितनी भी तारीफ करूँ बहुत कम है ..

आग़ाज़.....नयी कलम से... said...

agar aapki aawaz ghandhi ji ne sun li to wakai unhe bhut pida hogi....baharhaal ye sacchai badi kadavi hai....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी यह प्रस्तुति कल २८-७-२०१० बुधवार को चर्चा मंच पर है....आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा ..


http://charchamanch.blogspot.com/