निगाहों में रख लो और दिल में बसा लो मुझे
हाथों की लकीरों में लिल्लाह सजा लो मुझे
मैं डूबती जाती हूँ इक कुंद सी आवाज़ हूँ
थामो तो मेरा हाथ बाहर तो निकालो मुझे
वो धूल का ज़र्रा हूँ मैं बस यूँ ही पड़ी रहती हूँ
आओ न आँधियों कहीं और उड़ा लो मुझे
अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
2 comments:
बेहतरीन!
बहुत सुन्दर्।
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