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27.7.10

आओ न आँधियों कहीं और उड़ा लो मुझे ...

निगाहों में रख लो और दिल में बसा लो मुझे
हाथों की लकीरों में लिल्लाह सजा लो मुझे

मैं डूबती जाती हूँ इक कुंद सी आवाज़ हूँ
थामो तो मेरा हाथ बाहर तो निकालो मुझे

वो धूल का ज़र्रा हूँ मैं बस यूँ ही पड़ी रहती हूँ
आओ न आँधियों कहीं और उड़ा लो मुझे

2 comments:

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर्।