अबूझमाड़ छतीसगढ़ का ४००० स्क़ुएअर किलोमीटर का आजाद हिंदुस्तान का स्वंत्र क्षेत्र जहा का आज तक सर्वे भी न हो सका. नारायणपुर जिले में ३६६ गाँव आते है इसी जिले का एक हिस्सा है अबूझमाड़ जहा माडिया गोंड अधिकांस रूप से मिलते है,
मध्य भारत का यह नक्सल प्रभैत खेत्र जहा बिजली, पीने का पानी, पाठशाला, अस्पताल और रोड आज भी नहीं बहाए जा सके है. यहाँ आज भी आधुनिक भौतिकवाद प्रवेश नहीं कर सका है. जबकि यहाँ ठेके तो सभे कम के निकले जाते है और सरकार तथा ठेकेदार मिल बात कर पैसा खा जाते है, कारण नक्सली सरकार के हर कम का विरोध करते है, अन्दर घुसने पर एक वीरान सी नदी मिले जहा पानी भरा था अधिक गर्मी के कारण प्यास अधिक लग रही थे जैसे ही मै पानी पीने के लिए आगे बाधा मेरे साथ के स्थानीय व्यक्तियों ने ततकाल रोक दिया और कहा की यहाँ का पानी मत पीना क्योंकि इसे पीने से मलेरिया होता है. मानी लाख समझाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने दावा किया की यदि यहाँ के पानी की जाँच कराइ जाए तो यह बात सिद्ध भी हो जाएगी.
हर विकास के बात का विरोध करने वाले नक्सलियों ने यहाँ तक पहुचने वाली सड़क को जगह जगह से खोद डाला है, जिसके यहाँ कोई भी चार पहिया वाहन वहां घुस ही नहीं सकता. जमीन में जगह जगह माइंस बिछाई गई है. इसलिए यहाँ संभलकर चलना पड़ता है.
आगे हमें आदिवासियों का गाँव मिला इनके गाँव में मुसिल से चार या पांच घर शामिल होते है बाकी हज़ार फीट की दूरी के बाद ही इक्का दुक्का घर मिलते है,
सहकारी उचित मूल्य की दूकान यहाँ से चुदः किलोमीटर दूर है ये लोग चावल के लिए नारायपुर जाते है. इनको मिलने वाला ३५ किलो का चावल स्वयं के लिए पर्याप्त है लेकिन रात में नक्सली यहाँ आते है और जोर जबरदस्ती से इनसे चावल और मुर्गा ले जाते है नही देने पर मरते है,
ठीक इसके विपरीत सी आर पी ऍफ़ के जवान दिन में आकर कहते है की नक्सलियों की मदद क्यों करते हो ?
लेकिन ये आदिवासी यहाँ से जाना भी नहीं चाहते कहते है हम तो यही मस्त है, कुछ जागरूक आदिवासी कहते है हम है भी तो जाए कहा ?
No comments:
Post a Comment