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31.7.10

कापुरुष कब तक नारी जीवन स्वेदना से खेलते रहेंगे ,

कापुरुष कब तक नारी जीवन स्वेदना से खेलते रहेंगे ,

नारी जीवन को कबतक आत्महत्या की काली गर्द में फेंकते रहेंगे



पुरुष और लड़कियों की मानसिकता में बहुत अंतर होता है ! पुरुष अपनी भड़ास को औरतो पर चिल्ला कर निकाल लेता है! क्योंकि उसका काम है औरत के विचारो को दबाना ! पर एक लड़की अपनी सारी भड़ास अपने अन्तःकरण में समा लेती है, और अग्नि की तरह जलती रहती है ! हो सकता है सारे लोग इस विचार से इतफ़ाक रखते हो। पर यदि यह मत गलत होता तो आज के परिवेश में महिला आत्महत्या दर निरन्तर नहीं बढ़ता। आंकड़ों का सत्य कहता है महिला आत्महत्या दर पुरषों की अपेक्षा 10 गुना अधिक है ! यदि आंकड़ों पर द्रष्टि डालें तो देखेंगे की बहार काम करने वाली लड़कियां जो आत्मनिर्भर हैं तथा समाज में उनका अपना मुकाम है और वो अपने जीवन के सारे फैसले स्वयं ले सकती हैं! इसके बावजूद भी उन महिलाओं की आत्महत्या दर अधिक है चाहे वो आम लड़की हो या सेलेब्रिटी जब उन्हें प्यार में धोखा मिलता है तो वो धोखे का आघात बर्दाश्त नही कर पाती है ! तब वे अपने जीवन को समाप्त करना ही एक आसान रास्ता मानती है ! अभी हाल ही में प्रसिद्ध माडॅल विवेका बाबा ने आत्महत्या कर ली , कारण अपने प्रेमी का धोखा और तिरस्कार बर्दाश्त नही कर सकी तो उन्होंने आत्महत्या कर ली वाही मिसइण्डिया रही नफीसा जोसेफ ने भी अपने प्रेमी से धोखा खाकर कुछ समय पूर्व आत्महत्या कर ली थी। ऐसे ही यदि आंकड़ों पे दृष्टि डालें तो देखेंगे की रोजाना कोई न कोई लड़की प्रेम में आघात पाकर अपनी जीवन लीला समाप्त करती जा रही है ! मनोविज्ञानिको का मत्त है ‘आज के परिवेश में जहाँ लोगों को अपने जीवन निर्वहन के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ रहा है घर और बाहर अत्यंत मानसिक तनाव झेलना पड़ रहा है वही प्यार में धोखा खाना उनके लिए असहनीय होता है और उनके लिए जीवन समाप्त करना एक आसान उपाय लोगों को दिखता है ’ चाहे कोई औरत पूरी तरह स्वतंत्र या आत्मनिर्भर क्यों न हो प्यार का धोखा उसके लिए असहनीय होता है क्योकि स्त्रियों में संवेदनशीलता एवेम भावुकता अधिक होती है। पुरुषमानसिकता स्त्रियों की मानसिकता से बिलकुल विपरीत होती है! पुरुष का आकर्षण स्त्रियों के शारीरिक सौन्दर्य पर केन्द्रति होता है ! उसका प्रेम शरीर से शुरू होकर उसी शरीर पे समाप्त हो जाता है और वो आसानी से एक को छोड़ कर दूसरे से जुड़ जाता है! उसके लिए प्रेम प्यार की बातें आम होती हैृ! परन्तु एक लड़की किसी भी पुरुष से आत्मा तथा मन से जुडती है और जब उसे आत्मिक आघात होता है , तो वो अघात उसके लिए असहनीय होता है और तब उसके सामने सबसे आसान विकल्प बचता है अपनी जीवन लीला को हमेशा हमेशा के लिए समाप्त कर दें ! स्त्री मानसिकता मतलब समय से पहले अपने आप को उम्र से बड़ा मान लेना ! इसका बड़ा कारण ईश्वरी बेइंसाफी भी है ! एक पुरुष 60 वर्ष की आयु में भी पिता बन सकता है पर एक स्त्री का 3५ से 3७ वर्ष की आयु के बाद उसका माँ बनना कठिन होता है! और आज जहाँ लोग अपना कैरियर बनाने के लिए 30 का आंकड़ा पार कर जाते हैं तो उस उम्र में प्यार में धोखा खाना उनके लिए असहनिय हो जाता ह। और उनका सारा आत्मविश्वास समाप्त हो जाता है! तब या तो अपनी पूरी उर्जा को इन्साफ की गुहार के लिए लगा देती हैं! तब उन पर दूसरा आघात उनके चरित्र पर होता है जो उनकी आत्मा पर असहनीय प्रहार होता है! क्या किसी ने सोचा है कभी भी महिला हो या लड़की उनमे संवीदनशीलता होती है! क्या वो ऐसे ही मरती जाएँगी ? उन्हें भी जीने का हक्क है ! इन नपुंसक व का-पुरुषों को किसने हक्क दिया है रोज रोज लड़कियों एवम महिलाओं को ऐसे ही मारते जा रहे हैं!
उन्हें किसने हक दिया है कि झूठे प्रेम जाल में फंसाओ और जब सच सामने आता है तो वो इंसान भाग खड़ा हो ता है और जब उसका सच समाज के लोगों और उसके परिजनो व प्रियजनो को बताया जाए तो वे नारी चरित्र पर प्रहार करते है जान से मारने की भी धमकी देते है ! तब लड़की के पास दो रास्ते होते हैं या तो अपने सम्मान के लिए लड़ाई लड़े और अपने चरित्र पर प्रहार करने वाले को सबके सामने लज्जित करे और अपने स्वाभिमान की रक्षा करे। पर मै जानती हूँ की कोई भी लड़की किसी भी परुष का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती और वो जिस भी पुरुष से अपने इन्साफ की गुहार करेगी वो उसे इन्साफ नहीं दिला सकते क्यूंकि वो भी स्वयं पुरुष है तब लड़की मजबूर हो जाती है क्यूंकि उसका एक कदम उसके माता पिता के नाम पर सवालिया निशाँ लगा देता हैै।

उसके लिए तीसरा रास्ता बचता है अपने आपको अनंत अँधेरे में झोंक दे जिसमे वो तिल तिल मरती है पर उसको मरता हुआ कोई नही देख पाता आज मेरा प्रश्न ईश्वर और समाज से है ऐसे नपुंसक पुरुष कब तक नारी जीवन स्वेदना से खेलते रहेंगे और नारी को कब तक आत्महत्या की काली गर्द में फेंकते रहेंगे।

5 comments:

कविता रावत said...

Kayaron ka apna koi apna vajood nahi hota.. unki bhanayen mar chuki hoti hai... unmein aur jaanvaron mein sirf pooch 'dum' ka hi fark hai aur kuch nahi..

अग्निमन said...

ji kavita ji aap sach bol rahi hai .. par ek ladke hame sha lachar hoti hai ... par kas yadi sari ladkiya himmat kare ti ham in chndalo ko sach dekha sakte hai

Renu said...

ye hi duniya ki sacchai hai,,,,ladki kabhi kamzor nahi hoti,,lekin pyar usko kamjor bana deta hai,,,,,,jis tarah ek purush ki kaamyabi ke peeche ek istri ka haath hota hai,,usi tarah ek istri ki nakamyabi,uske dukh ke liye ek purush hi jimmedar hota hai,,,aur sahna istri ki niyati ban jati hai,,isko badalne ke liye purusho ki mansikta badalni hogi,,,,,,,,

दीपक बाबा said...

नारी आज भी पिस रही है और सदियों से पिसती आई है. कई मामलों में शिक्षित नारी का वही हाल है जो अनपद का. आज के सन्दर्भ में नारीवादी आन्दोलन और नारीवादी नेता, संगठन ही इसके लिए ज्यादा जिम्मेवार हैं.

Renu said...

ye hi aaj ke waqt ki sacchai hai,,,,,jaise ek purush ki kaamyabi ke peeche hamesha ek istri ka haath hota hai,waise hi hamesha ek istri ke dukh,,uski peeda,,uski nakamyabi ke liye ek purush hi jimmedar hota hai,,,,,is sabko badalne ke liye purusho ki mansikta ka badalna behad jaroori hai........