बहुत दिनों बाद कुछ लिखने का मन कर रहा है तो केवल इतना लिख रहा हूं कि,
ज़िंदगी तेरे बोल बहुत खूबसूरत हैं...
पर उतना ही सुनता हूं जितनी ज़रूरत है...
तेरे दिल में जो आता है बोलती है
हर बात में एक नया राज़ खोलती है
मै क्या करु इतना समझदार नहीं हूं
जो तेरे हर एक इशारे को समझ जाउं
इसीलिए कभी तू रोती कभी हंसती है..
मै तूझसे जैसे ही कुछ कहने चलता हूं
तु मुंह उधर कर लेती है, जैसे कुछ सुनना ही नही चाहती
ठीक है मैं भी तेरी ही बात मानूंगा और
ज़िंदगी में एक बार हार मानूंगा
15.7.10
अब तो तेरी बात माननी पड़ेगी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment