25.7.08
सुनील चौधरी
दृश्य-1 - तब पीपी शर्मा मुख्य सचिव हुआ करते थे. होटल अशोका में टाटा पॉवर के अधिकारीयों के साथ मीटिंगहो रही थी. करीब 100-125 पत्रकार आए हुए थे. सब कवर करना चाहते थे. पर यह इन्टरनल मीटिंग थी. किसी कोअन्दर नहीं जाने दिया गया। पीपीशर्मा जी जब मैंने ख़बर के लिए आग्रह किया. तब उन्होंने कहा की 15 मिनट बादउद्योग सचिव तथा ऊर्जा सचिव नेपाल हाउस में प्रेस वार्ता कर बता देंगे। 15 मिनट बाद नेपाल हाउस मात्र 5 पत्रकारही थे। प्रभात ख़बर से मैं था. 2 लोग हिंदुस्तान तथा जागरण से थे. तब के ऊर्जा सचिव के विद्यासागर ने मजाक मेंही गंभीर बात कह डाली। कहा- क्या यार अशोका होटल में तो 100 के करीब पत्रकार थे. यहाँ केवल 3 ही हो। अबउन्हें कौन बताता की सब न्यूज़ के लिए नहीं, टाटा पॉवर से गिफ्ट की आस में आये थे. जिन्हें न्यूज़ लेना है, वो यहाँहै.
दृश्य-2- दवा के संगठन की प्रेस वार्ता थी. 150 पत्रकार थे. फर्जी भी थे. बेचारे का गिफ्ट भी घट गया. एकपदाधिकारी ने बताया की केवल 5 प्रेस को ही सूचना दी गई थी. पता नही 150 कहाँ से आ गए।
दृश्य-3- सीएम नरेगा में जाँच की घोषणा करने वाले थे। प्रेस सलाहकार ने लगभग हर प्रेस को सूचना भेजी थी।पर आए केवल 7-8 लोग ही, क्यूंकि वहाँ गिफ्ट का कोई इन्तेजाम नहीं था। वहाँ गरीबों के लिए बनी योजना में होरही धाँधली पर बात होती, जो गिफ्टउवा पत्रकार के कोई काम का मुद्दा ही नहीं था।
ये चंद उदहारण हमारी रांची के पत्रकारों के लिए है जो अपने आपको टॉप समझते हैं, अब आप ही तय करें की ख़बरके लिए क्या महतवपूर्ण था। फिर नदीम ने क्या ग़लत कह दिया। दरअसल कुछ पत्रकार इस पेशे में आते ही हैंकमाने के लिए। चमचागिरी इनकी खासियत है। चाहे संपादक की करें या नेताओं की। ये लोग तरक्की का शार्टकटजान गए हैं। 2-4 साल में ही कार, फ्लैट, और न जाने क्या-क्या? ताज्जुब तो तब होता है की इनके परिवार मेंशादी ब्याह तो मनो वरदान है। एक साल में एक ही बच्चे का 2-2 बार बर्थडे मना लेने में इन्हे महारत हासिल है. अब कोई पूछे कि आख़िर एक ही बच्चे का साल में तीन-तीन बार जन्मदिन क्यूँ मन रहे हो भाई? जानते हैं क्यूँ - मैं बताता हूँ, क्यूंकि ऐसे ही अवसरों में अपने अपने संपर्क वालों का लोग दोहन कर लेते हैं। मतलब जो जहाँ है, वहींअपने हिसाब से दूह रहा है... जय राम जी की॥
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3 comments:
उगलो भाई ऐसे ही उगलो तब जाकर दिल को राहत मिलेगी..... आपकी उल्टी में अभी बहुत तेज़ाबी अंश है.....
नगीम भाई,
शानदार उलटी करी है आपने, बडे बडे लोगों को इस उलटी का सवाद आ रहा होगा। और जो भी कुछ है उगलो जम कर उगलो।
जय जय भडास
भाई वाह मजा आ गया ।
पर ऐसा नहीं है कि रांची में ही मुफतखोर हैं,
हमारे कानपुर में भी बहुत हैं । साले प्रेस क्लब आते ही इसलिये हैं कि कुछ माल मिलेगा । यहां हम इसे डग्गामारी कहते हैं । डग्गे की उम्मीद हो तो साले 10 किलोमीटर दौडे चले जायेंगें नहीं तो प्रेस क्लब में बैठे बैठे खबर बना लेगें । इनकी वजह से पत्रकारों की इमेज 20-20 रूपये में बिकने वाली हो गयी है ।
उदाहरण सुनिये - एक बार मैं पेट दर्द का ईलाज कराने एक प्राइवेट नर्सिंग होम गया वहां डाक्टर ने मुझसे कहा कि अलट्रासाउन्ड कराना होगा, फिर पूछा कि क्या करते हो मैने बताया कि पत्रकार हूं तो जानते हैं वो क्या बोला बोला तुम रहने दो होमोपैथिक दवा खाओ ठीक हो जायेगा, जैसे पत्रकार न हुये भिखारी हो गये । ये अपने डग्गामार साथियों का ही प्रताप है कि पूरी बिरादरी की इमेज खराब हो गयी है ।
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