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23.7.08

हुए अपने हरजाई

बंधु विरोधी कर रहे,नाहक हाहाकार
लोकतंत्र को रौंद जो,जीत गई सरकार
जीत गई सरकार,बंदिशें काम न आईं
चला कैश का खेल,हुए अपने हरजाई

3 comments:

Anonymous said...

जगदीश भाई,

बहुत खूब, शानदार लिखा।
ये ना पूछो कि जख्म पर मरहम लगया या फ़िर इसे कुरेदा।

जय जय भडासी

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

सकल चूतियापा जताया जनता ने इस तमाशे पर भी सट्टा लगा कर......

ताऊ रामपुरिया said...

बंधुवर , हरजाई तो अपणै ही हुया करै सें !
बहुत गंदी है राजनिती ! अपणै समझ नी आंदी !
और सटोरिये तो थू थू .....