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31.7.08

हास्य Gazal

फिसलन बड़ी है राह मैं botal बचा के चल
आसान होगी manzile पीता पिलाता चल।
डर गर ये लग रहा है कि कोई न लूटले
पउए को बाँध फैंट मैं हिलता हिलाता चल।
दारु अगर है कम तो परवा नही कोई
सोडा भी गर नही हैto paanee milaataa chal.
Ghaalib banegaa ek din ye baat jaanle
Fakaakashee kaa fool khilaataa hua too chal।
काली अंधेरी रात है,सीवर खुले हुए
बकर के पोल बिजली का तू झिलमिलाता चल।
राहें बहुत कठिन हैं मकबूल जीस्त की
बनकर के सूरदास तू टिकता टिकाता चल।

Maqbool


1 comment:

Anonymous said...

मकबूल साहब,
बेहतरीन है, कहाँ गुम हो गए थे, पंडित जी कि कमी ना होने पाए. और हाँ पीने पिलाने कि बात करें तो भडासी पहले से ही तैयार मिलेंगे.

"बनकर के सूरदास तू टिकता टिकाता चल।
पीने के लिए मकबूल के यहाँ निकल "

जय जय भड़ास