reenakari: ख़्वाब: लिखने को कहानी चला था में अपनी जाने किस जोश में हर बार गिरा ओदें मुंह मैं होश में जरा समेट कर ख़्वाब को चलुं फिर है एक दरिया सामने गर...
3.12.11
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अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
reenakari: ख़्वाब: लिखने को कहानी चला था में अपनी जाने किस जोश में हर बार गिरा ओदें मुंह मैं होश में जरा समेट कर ख़्वाब को चलुं फिर है एक दरिया सामने गर...
1 comment:
सुन्दर प्रविष्टि के लिए बधाई.
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