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17.2.08

जा जाओ भड़सियों

कई दिनों तक भड़ास से दूर रही, हालांकि ये दूरी वास्तविक नही थी क्यूंकि लिख भले न रही होऊं पढ़ती तो रोजाना थी. ये समय मैंने भड़ास की सदस्य होने के नाते इसके चिंतन में लगाया. मैंने नोटिस किया कि जैसे जैसे भड़ास पुराना पङता जाका रहा है इसकी धार कम होती जा रही है और उसकी जगह एक तरह कि अपरिपक्वता ने ले ली है. लगातार भडास के नए सदस्यों द्वारा ऐसी पोस्ट्स लिखी जा रही हैं जिनमें केवल गालियाँ और एक अश्लील शब्दों की भरमार तो रहती है मगर कंटेंट के नाम पर वो जीरो होती हैं. कोई अचरज नही कि इनमें से अधिकांश पोस्ट नए लोगों कि होती हैं एकदम से आकर छा जन चाहते हैं.बरसों से अखबारों में एक कालम की जगह को तरस रहे इन साथियों को जब इंटरनेट का अपरिमित विस्तार मिलता है तो लगता है अब बस एक ऐसी पोस्ट लिखनी है कि पढ़ने वाले मुझे दाद दें. मगर ये कोशिश कब सीमा का अतिक्रमण कर जाती है उन्हें ख़ुद ही पता नही चलता है.दुःख होता है कि हमारा भड़ास जो गंभीर चिंतन का मंच हो सकता था वहाँ केवल छिछला और निराधार मनोरंजन हो रहा है. लोग इस मंच का दुरूपयोग कर रहे हैं. दुनिया कि सबसे गंभीर बात को व्यंग ही अभिव्यक्त करता है ये सही है मगर यहाँ तो मामला केवल छा जाने का है. क्या कारण है कि इतना सशक्त होने के बावजूद भड़ास महिलाओं को जोड़ पाने में नाकामयाब रहा है अब तक? क्या कारण है कि भडास इतनी लोकप्रियता के बावजूद हल्का फुल्का मनोरंजक ब्लॉग बनता जा रहा है. भड़ास की टैगलाइन की आड़ हमें बचा तो सकती है मगर वो कोई आधार नही देती विमर्श का. लोग आते हैं भड़ास पढ़ते हैं और हंस देते हैं, मेरे कुछ साथियों को भड़ास पर नयी पोस्ट का इंतजार रहता है कि आज किसकी बखिया उधेड़ी गयी है ( शालीनतम शब्द का प्रयोग किया है ). कहने का मतलब ये है साथियों कि भड़ास हमारा है और इसकी फिक्र भी हमीं करेंगे. हमें जगाना होगा इससे पहले कि भड़ास लुगदी साहित्य का विकल्प बन जाए. हमें भादासियों से आग्रह करना होगा कि वो आयें तो कुछ सार्थक लेकर आयें. भड़ास निकालें मगर गंदगी न फैलायें. ये गंदगी उनके ब्लॉग या प्रोफाइल को कुछ हिट्स तो दिलवा देगी मगर कोइ प्रश्न खडा नही करेगी. हमारी हालत trp के दीवाने चैनलों जैसी हो जायेगी......

8 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

धन्यवाद, पूजा सिंह जी। अपने ही साथियों को राह दिखाने के लिए। कुछ दिनों से यह ब्लॉग पढ़ना बन्द कर दिया था। आज आप की पोस्ट पढ़ कर इसे पढ़ा है। ऐसा लगता था जैसे यौन कुंठितों की टोली से पाला पड़ गया है।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

आत्मा की गहराई से निकला हुआ धन्यवाद स्वीकारिए मेरी बात को आपने शब्द दे दिये पूजा बहन.....

बाल भवन जबलपुर said...

Wah deedi

Astrologer Sidharth said...

धन्‍यवाद बिल्‍कुल सही शब्‍द है इस पोस्‍ट के लिए
इसके शुरूआती तेवर देखकर मैं इसका सदस्‍य तो बन गया लेकिन इसमें पोस्‍ट करने की हिम्‍मत नहीं कर पा रहा था। इस बारे में मेरी यशवंतजी से बात भी हुई तब उन्‍होंने कहा कि यह शिव की बारात है इसमें सभी शामिल हैं लेकिन हिन्‍दी में कम्‍युनिटी ब्‍लॉग का इतिहास बनाने वाले लोगों के लिए यह पर्याप्‍त प्रयास नहीं है। शरुआत भले ही एक विचार से हुई हो लेकिन आज हिन्‍दी में लिखने वाला एक बहुत बडा वर्ग हमें देख रहा है ऐसे में जिम्‍मेदारी और बढ जाती है
और नहीं तो मॉडरेटर्स को लगाम लगाने का प्रयास करना चाहिए इससे ब्‍लॉग और कम्‍युनिटी दोनों का स्‍तर सुधरेगा
पूजा जी को एक बार फिर धन्‍यवाद

Unknown said...

jo log gmbhirta dena chahte hain unhe roka kisne hai, pr jo agmbhir hain unki bhi bat aise tal dene se kam nhin chlega unke bhadas ka mtlb bujhna hoga, puja didi, bhai log..

राहुल गोयल said...

puja ji bilkul sahi farmaya apne ki bhadas ko satrhak bahaso ka manch banaya jana chahiye tha lekin filhal yaha dimagi diwaliapan jyada dikhayi de raha hai lekin sirf naye logon ko dosh dena thik nahi hai(me bhi naya hu) naye logo ke khilaf fatwa jari karne se acha hai ki purane log sarthak bahas laye lekin vo naye logon ko usme shirkat karne ka mouka de par bahse chingam ki tarah na ho kyoki baki blogs pe aisi bahso ka kya hashr ho raha hai ye sab dekh rahe hai sthiti vaha bhi gali galoch tak pahunch gayi hai lekin fir bhi apne jo kaha usse me sahmat hu lekin sirf naye logo ko galat na thahraye akhir aap bhi to kabhi naye rahe honge

शशिश्रीकान्‍त अवस्‍थी said...

पूजा जी आज कई दिनों बाद भड़ास पर आया तो सभी पुरानी पोस्‍टों को पढते हुये आपकी पोस्‍ट भी चालू हालत में पढी ,पढने के बाद पोस्‍ट का शहद दिमाग में जम गया । खुले दिल से अपनी बा‍त रखना वास्‍तव में बडी बात है आपने वह बडी बात कही है । भवना का व्‍यक्त करने के लियें शब्दों की आवश्‍यकता पडती है इसलिये भडास पर यह सब आ जाता है जो वास्‍तव में नही आना चाहियें लेकिन हर भडासी की अपनी अलग ही भडास है जिसके कारण थोडा बहुत हो जाता है जिसको नज़नदांज करना चाहिये क्‍यो भी हो अपशब्‍दों का प्रयोग अपनी शान बढाने के लियें नही करेगा वह बेचारा निश्चित ही कही न कही प्रताडित होगा । आपकी खुली आलोचना भडास व भडासियों को कुछ नया करने को निश्चित प्रेरणा देगी ।

कानपुर से

शशिकान्‍त अवस्‍थी

Asif Khan said...

puja ji, jai bhadaas. aapne bilkul sahi mudda uthaya hai.gaali bak kar logo ko hansi aati hai to unki jagah bhadas nahi kahaß aur hai. bhadaas pe gandagi kyon faila rahe hai. aise logo ke liye banaras shahar hi sabse sahaß jagah hai. jaha her baat ki shuruaat gaali se hoti hai aur khatam bhi gaali per hoti hai. mera un bhadaasio se saader anurodh hai ki ve waha ja sakte hai aur gaaliyaan bak khoob hans sakte hai.