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17.2.08

गोबर के उपलों में दबी आग कुरेद दी पूजा बहन ने....

पूजा बहन,आज आपने जो बात लिखी है वही पीड़ा मैं भी अपने भीतर दबाए बैठा हूं । कुल मिला कर आज जो भी भड़ास पर है वह रचनात्मक स्तर पर अधिकांशतः वैचारिक दुर्भिक्ष से त्रस्त प्रतीत हो रहा है । मैं तो यही सोच कर रह जाता हूं कि आज जो आदमी उल्टी कर रहा है जब वह वमन करके स्वस्थ हो जाएगा तब कुछ ऐसा कर पाएगा जो बखिया उधेड़ने के बाद करी गई नयी सिलाई जैसा हो जोकि अनुकूल होगा । यह मंच वैचारिक बहस का नहीं है ऐसा नहीं है बस कोशिश रही है कि गम्भीर मुद्दों पर भी हम सब मुस्कुराते हुए चर्चा कर सकें । आप जरा गौर से देखिए कि भाई यशवंत ने ऊर्जा को बहस में बदल कर बेकार चले जाने से रोकने के लिए एक करारा व्यंग करा है इस उम्मीद को लेकर कि शायद जो लोग मात्र मुद्दों पर बहस कर रहे हैं वे अपनी जिम्मेदारी स्वीकार कर मुद्दों के सुल्झाव के लिए सार्थक कार्य करना शुरू करं । किन्तु सब तरह के लोग आते हैं इस मंच पर कुछ अपनी हताशा व्यक्त करते हैं कुछ व्यवसायिकता और कुछ झुंझलाहट । आशा तो मुझे भी रहती है सबसे कि लोग ऐसी उलटी करें जो कि किसी के खाने के काम आ सके ,पत्रकार अपनी इस व्याख्या को कि "पतनात त्रायते इति पत्रकारः" जान सकें न कि यह कह कर मुंह चुरा लें कि we are in news business . हर आदमी अपनी मजबूरी का रोना रो देता है तो आंसू कौन पोछेगा ? विचार करिए कि मैं एक पोस्ट लिखने वाला था कि क्यों सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही का टी.वी. पर सीधा प्रसारण नहीं होता है जबकि न्याय की परम्परा है कि वह तो खुलेआम और सबके सामने होना चाहिए लेकिन विचार करिए कि क्या लोग उसे पढ़ेंगे या कुछ करेंगे ,कदाचित नहीं । कितने लोगों ने यशवंत जी को छोड़कर जस्टिस आनंद सिंह के मुद्दे पर बात करने की भी ज़हमत उठाई अब तक ? सत्यतः तो अब लोग बस लाभ-लाभ के के विचार को ही मानते हैं ’शुभ-लाभ’ का विचार कहीं दब कर रह गया है । आजकल मन में यह बात घर कर गयी है कि बाजार हर चीज व विचार की दिशा निर्धारित करता है और यदि आप अनुकूल नहीं हैं तो उठाकर फेंक दिये जाते हैं । मैं व्यक्तिगत तौर पर यशवंत भाई से इस मुद्दे पर काफ़ी झगड़ा कर चुका हूं । अब हम सबको यह सोचना है कि क्या पूंजीवाद को हम अपने बल पर निजी स्वार्थों को त्याग कर नयी दिशा दे सकते हैं कि पुनः एक बार शुभ-लाभ का विचार जीवित हो सके इससे सांगोपांग तथा सर्वांगीण विकास हो हमारा,समाज और देश के साथ दुनिया का भी । मैं मेरी सभी बहनों से एक उम्मीद करता हूं कि उन्हें किसने रोका है भड़ास पर छा जाने से ,अगर आपको लगे कि लोग भड़ास की धार कुंठित कर रहे हैं तो आप आगे आएंगी समय निकाल कर.........
जय भद्र आस

2 comments:

Unknown said...

sahi kaha dr. sab aapne, gmbhirta bdlav kee bechainee se bhri ho to thik vrna chbhulane ke liye to agmbhirta hi sahi hai, km se km ek asahmti ghridha aur krodh aur ek bechainee to hai hee isme... dhire-dhire yhi kuchh sarthk roop lega-aisa mujhe lgta hai...chije itni bigdee hain ki galee nhi denge to kya gle lgayenge?

धीरज चौरसिया said...

बहुत ही सटीक तरीके से जवाब दीया आपने, मन प्रसन्न हो गया | वैसे मैने भी एक पोस्ट लिखी है आप सबो का साथ चाहीये......