भ्रष्टाचार का मुकाबला करने के केंद्र सरकार के दावे को एक मजाक बता रहे हैं राजीव सचान
क्या रेलमंत्रालय, वित्तमंत्रालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, केंद्रीय लोक निर्माण विभाग और संचार मंत्रालय भारत सरकार के अधीन नहीं हैं या फिर ये ऐसे विभाग या मंत्रालय हैं जिन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कोई जोर नहीं चल रहा है? यह सवाल इसलिए, क्योंकि उक्त विभागों-मंत्रालयों के 165 भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। कृपया ध्यान दें कि यह अनुमति चाहिए उस केंद्रीय जांच ब्यूरो को जो प्रधानमंत्री के तहत कार्य करता है। इस पर भी गौर करें कि पिछले वर्ष सीबीआई के एक कार्यक्रम में खुद प्रधानमंत्री ने कहा था कि उसे बड़ी मछलियों के पीछे पड़ना चाहिए। इस अवसर पर उन्होंने इस पर भी चिंता जताई थी कि सार्वजनिक जीवन में बढ़ता भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या बन गया है और वह विधि के शासन में बाधक बन रहा है। क्या कोई इस निष्कर्ष पर पहुंच रहा है कि खुद प्रधानमंत्री की कथनी-करनी में अंतर है? जो भी इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता-इसलिए और भी नहीं, क्योंकि केंद्रीय सतर्कता आयोग की सक्रियता के बावजूद सीबीआई को भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे नौकरशाहों के खिलाफ आरोप पत्र दायर करने की इजाजत नहीं दी जा रही है। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालय केवल केंद्रीय सतर्कता आयोग के निर्देशों की ही अनदेखी नहीं कर रहे हैं, क्योंकि खुद उच्चतम न्यायालय का यह आदेश है कि जिन नौकरशाहों के भ्रष्ट आचरण की जांच हो चुकी है उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर करने में तीन माह से अधिक की देरी न हो। बावजूद इसके देरी हो रही है। इससे आजिज आकर केंद्रीय सतर्कता आयोग ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय के निर्देशों की अनदेखी करने वालों पर शीर्ष अदालत की अवमानना का मामला चल सकता है। यह समय ही बताएगा कि सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का भय कुछ हलचल पैदा कर सकेगा या नहीं, लेकिन फिलहाल भ्रष्ट अफसरों को जिस तरह बचाया जा रहा है उससे यही संकेत मिलता है कि घपला-घोटाला और हेराफेरी करने वालों को भयभीत होने की जरूरत नहीं। आखिर भ्रष्ट अधिकारियों के लिए इससे मनमोहक स्थिति और क्या हो सकती है कि खुद सरकार ही उनका बचाव करे? रेलवे, संचार, वित्त मंत्रालय के कुछ अधिकारी ऐसे भी हैं जिनके खिलाफ सीबीआई को कार्रवाई की अनुमति वर्षो से नहीं दी जा रही है। इसके लिए सीबीआई से तरह-तरह के स्पष्टीकरण मांगे जा रहे हैं-सिर्फ इसलिए ताकि ज्यादा से ज्यादा वक्त जाया किया जा सके। क्या इससे विचित्र दुर्योग और कोई हो सकता है कि प्रधानमंत्री जिस सीबीआई से कहें कि बड़े भ्रष्टाचारियों को पकड़ो उसे केंद्रीय मंत्रालय ही भ्रष्ट तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुमति देने से इनकार करें? प्रधानमंत्री के बचाव में यह कहा जा सकता है कि वह चाहकर भी रेल मंत्रालय और संचार मंत्रालय पर दबाव नहीं डाल सकते, क्योंकि संप्रग के मजबूत घटकों-तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक के नेता मनमानी करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन आखिर वित मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय पर उनका जोर क्यों नहीं चल रहा है? एक क्षण के लिए यह माना जा सकता है कि प्रधानमंत्री अपने वरिष्ठ सहयोगी यानी वित्तमंत्री के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते होंगे और किन्हीं कारणों से शहरी विकास मंत्री को भी निर्देश नहीं दे पा रहे होंगे, लेकिन आखिर वह कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय को कोई निर्देश देने की स्थिति में क्यों नहीं हैं? यह मंत्रालय तो उनके ही अधीन है। क्या कोई इस पर यकीन करेगा कि प्रधानमंत्री इस मंत्रालय के राज्यमंत्री को कोई निर्देश नहीं दे पा रहे हैं? सीबीआई को कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय से 11 अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर करने की अनुमति चाहिए। कम से कम इन 11 अधिकारियों के मामले में सिर्फ प्रधानमंत्री ही बता सकते हैं कि सीबीआई को हरी झंडी क्यों नहीं दी जा रही है? नि:संदेह कोई यह अवश्य कह सकता है कि व्यस्तता के चलते वह इस मामले पर ध्यान नहीं दे पा रहे होंगे, लेकिन यदि ऐसा ही है तो फिर वह सार्वजनिक मंचों से ऐसे वक्तव्य क्यों देते हैं कि भ्रष्टाचार से लड़ने की जरूरत है? क्या यह देश के साथ धोखाधड़ी नहीं कि सार्वजनिक रूप से तो भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम उठाने की बात की जाए, लेकिन इस वास्तविकता से मुंह फेर लिया जाए कि खुद केंद्रीय मंत्रालय भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण देने में लगे हुए हैं? क्या किसी को इस निष्कर्ष पर पहुंचने से रोका जा सकता है कि व्यक्तिगत रूप से ईमानदार प्रधानमंत्री अपने इर्द-गिर्द और यहां तक कि अपनी नाक के नीचे भ्रष्टाचार को फलने-फूलने से नहीं रोक पा रहे हैं? यदि कोई राजा ईमानदार हो और उसके दरबारी भ्रष्ट हों तो इस पर न तो गर्व किया जा सकता है और न ही संतुष्ट हुआ जा सकता है। कांग्रेस सगर्व यह दावा कर सकती है कि हमारे प्रधानमंत्री तो बेदाग हैं, लेकिन क्या वह यह भी कह सकती है कि उनके शासन में भ्रष्ट तत्वों की खैर नहीं? सरकार के मंत्रालय किस गति से भ्रष्ट अफसरों का बचाव करने में लगे हुए हैं, इसका पता इससे चलता है कि अगस्त 2009 में ऐसे अफसरों की संख्या 51 थी जिनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने के लिए सीबीआई प्रतीक्षारत थी। अब यह संख्या बढ़कर 165 हो गई है। इसका अर्थ यह भी है कि केंद्र सरकार के विभागों के अधिकारी बिना किसी भय-संकोच के हेराफेरी करने में लगे हुए हैं। अब यदि कांग्रेस अथवा केंद्र सरकार का कोई प्रतिनिधि संसद की छत पर चढ़कर भी यह दावा करे कि भ्रष्टाचार से लड़ा जा रहा है तो इसे मजाक के अलावा और क्या कहा जा सकता है? (लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं)
साभार- दैनिक जागरण
6.7.10
भ्रष्टाचार से लड़ने का नाटक
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