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15.10.08

मज़ा बरकरार रहे!!! भडास ज़िन्दा रहे!!!

भडास आज फ़िर चर्चा में है, हो भी क्यों ना जब किसी भी चीज़ की अति हो जाती है, तो कुछ
विवाद तो होना आवश्यक सा हो जाता है। काफ़ी दिनो से भडास पर मात्र कवियो की गोष्ठियां, विज्ञापन, व्यंग्यकारों की चुस्कियां, आदर्शवादिता की चादर ओढे़ उसके पीछे छिपे बहरूपिए समाजसेवियों के चुराए गये लेख आदि ही देखने में आ रहे थे, भडास भूल ही गया था कि वो किस लिए बनाया गया था, और किन किन कारणो से चर्चा में रहा करता था। रजनीश ने दो लोगो को ब्लाग से हटाया तो सभी लोग इमेज को लेकर रोना रोने लगे, " आप तो ऐसे ना थे" की तर्ज पर। अरे भाई लोगो, भडास के बारे में जान तो लेते, इसे पहचान तो लेते तभी ना इमेज उमेज का खेल खेलते। अरे भडास तो कभी भी इमेज बनाने का माध्यम रहा ही नही, ये तो अपनी बेबाकी, बदमिजाज़ी, खुले तौर पर किसी की भी मां बहन करने आदि और भी ना जाने किन कारणो से चर्चा में रहा करता था।
अब हुआ ये कि इसकी चर्चा इतनी आम हो गई कि लोगो अंधाधुंधी से इस ब्लाग का सदस्य बनना शुरु कर दिया। भीड़ इतनी बढ़ गई कि संभालना ही मुश्किल, पहली बात तो ये कि यहां पर किसी को संभालने की आवश्यकता थी ही नही। बस फ़िर क्या था लोग लग गये पेलम पेली मचाने।
जिसे धर्म का सूझा उसने धर्म की मां बहन की, जिसे जाति का सूझा उसने जाति की।
रही सही कसर बम ब्लास्टो ने कर दी, लोगो को एक बहाना मिल गया धर्म की ठेकेदारी करने का।
लेकिन लोग ये भूल गये कि भडास का असल उद्देश्य था, कि जिस भी व्यक्ति के मन में यदि कोई
भडास है, तो उसे पूरे भडासियाना अंदाज़ में उगल दे।
कुछ लोगो ने भाषा की भी पैरोकारी की है, जो कि शायद उचित भी हो, लेकिन ये भी तो सोचिए कि अगर भडास अपने असली रूप में निकालनी हो तो भाषाई संकोच कैसा? लिखो जी भर के, किसने रोका है। ये कोई सुधारवादी विचारधारा को प्रोत्साहित करने वाला ब्लाग तो था नही, जो आप लोग सुधार की कोशिशों में लगे रहें ? रही बात तत्कालीन विवाद की, तो भाई ये सब तो चलता रहता है, भाई लोग अगर आना चाहें तो स्वागत है, कौन रोक रहा है।
और यशवंत सिंह ने कोई ठेका तो ले नही रखा है अपनी इमेज को एक आदर्श इमेज बनाने का
वो तो अपने लेखों, लेखनी आदि के लिए कुख्यात हैं ही।
चलिए खैर भडास पर फ़िर कुछ मज़ा सा आ रहा है, उम्मीद है, मज़ा बना रहेगा।

3 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

ankit jee aap rajnish jee ke bhai ho kya. jo aapko kisi kee ma ,bahin karne kee bat likhni padi. aapki nazar me to yah sadak chhhap ho gya. bina ma bahin kiye bhee bahut good best likha ja skta hai.

Anonymous said...

भाई,
एक दिक्कत हो गयी, नवागंतुकों ने भडास की सदस्यता से पूर्व भडास को जानने और बुझने के लिए दिए गए लेख को पढ़ा ही नही और सफ़ेद पाशों की जमात में हमें भी शामिल करने की मुहीम चला दी, अरे भडास की तो मुहं ही अन्दर के भडास से शुरू होती है और एक गवई देहाती जब भडास निकालता है तो गालियों के जेवर को कैसे छोर सकता है,
चलिए वापस पेलम पेल में लगते हैं.
जय जय भड़ास

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ said...

नारदमुनि महाराज जी विचित्र जान पड़ा जब आपने बात की शुरुआत में अंकित भाई से सवाल करा कि क्या आप रजनीश जी के भाई हो..... ????
क्या वे आपको उनकी बहन प्रतीत हो रहे है या इस सवाल के पीछे कोई अलग आग्रह है?
भड़ास ज़िन्दाबाद