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4.2.08

यशवंत जी की हरिद्वार यात्रा....कुछ यादें - कुछ बातें

गुरुदेव,

आज योगी जी के विवाह के उपरांत जो पोस्ट मैरिज़ डिप्रेशन (मतलब उत्सव के बाद का खालीपन ) से मन भर गया है बस कुछ गत दिनों की मधुर यादें हैं जिनमे एक उपलब्धि समान है आपसे मुलाकात ये मन के स्वाभाविक उदगार है जैसा महसूस कर रहा हूँ वैसा ही लिख भी रहा हूँ... आपके व्यक्तित्व को शब्दों में बयां करना मेरी कवि मेधा से परे की बात है लेकिन आपसे मिलकर मुझे लगा की अभी इस दुनिया में अपनी शर्तो पर जिया जा सकता है ..अपनापन तो ऐसा मिला की लगा ही नहीं की हम दो अलग विधा के लोग मिल रहे हैं..सच कहूँ तो आपने मेरे अंदर के सोए हुए देहाती और भदेस मन को तंद्रा से जगा दिया है .....अब शायद ज्यादा आनंद आएगा कुलीन वर्ग की अभिनय से भरी दुनिया में उन पर खुद को थोपना वो भी अपनी शर्तो पर...आप भले ही दिल्ली की व्यस्त जिंदगी में हमे भूल गए होंगे लेकिन आप अभी भी यहाँ गंगा तट पर कुछ वीरान और तथाकथित बुधिजिवियो की महफिलो का "मिसरा" बन रहे है और सूत्रधार की भूमिका अपनी हैं...रमन जी भी आपके बारे में पूछ रहे थे आपका आलाप उनको भी पसंद आया..कुल मिला कर आपसे मिलकर ऐसा लगा की हमारी ये मुलाकात अब जीवनपर्यंत चलने वाली है ..खूब जमेगा रंग जब मिल बैठेंगे..हम और भाई यशवंत...अभी इतना ही शेष फिर..

आपका

2 comments:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

डाक्टर साहब, रुलायेंगे क्या? आप से परिचय इंटरनेट की आभासी दुनिया से हुआ, असल जीवन में मिले तो लगा कि शायद हम दोनों की जमीन, आत्मा, माटी और मुलुक एक है। जब ये सब एक हो तो सोच एक तो होनी ही थी। आपसे परिचय नहीं था पर जिस आग्रह से आपने बस से उतरते ही चाय पीने को अपने घर बुलाया, वो शायद किसी फुल-फ्लेज्ड शहरी के बस की बात नहीं। ये कोई सच्चे दिल का भड़ासी, देहाती और बिंदास ही कर सकता था। और आपके घर गया तो न सिर्फ चाय पी बल्कि पूरी रात गुजारी। जो कुछ जिया मैंने हरिद्वार में, आपके साथ, बुधकर जी के साथ, योगी के साथ, रमन जी के साथ, मनोज अनुरागी के साथ.....वह कभी भूलने वाली चीज नहीं। उम्मीद है, आप जल्द दिल्ली पधारेंगे और हम फिल मिल बैठेंगे चार यार.....
शुक्रिया, दिल से याद करने के लिए..
यशवंत

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

दादा,इमोशनला गए....