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2.2.08

अपने दिल की कहिए...


बसंत की दस्तक ने एक बार फिर से तन , मन और उपवन में आग लगा दी है। वसुन्धरा के श्रृंगार ने मन में अलसाए प्रेम को फिर से चैतन्य कर दिया है। मै भी छलांग लगाने को तैयार हूँ।

'खुसरो दरिया प्रेम का , उल्टी वा की धार,
जो उतरा सो डूब गया जो डूबा सो पार,
मेरे इस माद्दे को और बल मिल जाता है जब फ़िराक साहब की बात मान लेता हूँ -
'कोई समझे तो एक बात कहूं
इश्क तौफ़ीक है गुनाह नहीं,
विज्ञान , साहित्य और शास्त्रों के उदाहरणों और तर्कों के बावज़ूद भी ये गुनाह कर डाला । विज्ञान ने कहाँ ये तो हारमोन...वगैरह के कारण होता ही है . साहित्य ने उम्र , रूप और जात -पात , धर्म के सारे बंधन ख़त्म कर दिए. शास्त्रों ने कहाँ प्रेम ही सत्य है इस लिए ईश्वर से प्रेम करो... ! बावज़ूद इन सब के मुझ में ये तौफ़ीक थी की मैंने इश्क किया। अंत में दुनिया - दारी ने एक पाठ पढ़ाया
' ये सम ही सो कीजिए

ब्याह बैर और प्रीत,

इस पाठ में फ़ैल हो गया। और बशीर बद्र साहब की बात मान बैठा -

ये मोहब्बतों की कहानियां भी बड़ी अजीबो- ग़रीब हैं
तुझे मेरा प्यार नहीं मिला, मुझे उसका प्यार नहीं मिला

हालांकि बकौल निदा साहब ये टीस तो है -
'दुःख तो मुझ को भी हुआ, मिला न तेरा साथ

शायद तुझ में भी न हो, तेरी जैसी बात'
अगर आप के अन्दर भी है कोई ऐसा ही दर्द, अहसास या आग, किसी खूबसूरत लम्हे की याद... अनुभूति। तो मेरे इस यज्ञ में आहुति देने के लिये आप भी प्रेम सहित आमंत्रित हैं . अगर आमंत्रण से परहेज हो तो अनियंत्रित हो कर भी इस सागर में गोता लगा सकते हैं. अपनीबात... पर होगी इस माह प्रेम की बात. अपने दिल की कहिए कैसे भी...

1 comment:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

आशेन्द्र भाई,यकीन मानिए आपका नाम सचमुच में तो आशिकेन्द्र होना चाहिए था क्या स्पेलिंग मिस्टेक हो गयी है ,सुन्दर और गहरी रूमानियत का फ़ुसफ़ुस है ऐसे ही छोड़े रहिए....