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1.2.08

सोचा न था

वक्त इस मोड़ तक ले आएगा सोचा न था।
एक दिन अपनों से ही सामना हो जाएगा सोचा न था।
जिंदगी को बड़ा बेतरतीब जिया करते थे।
इसे संभल-संभल के भी जीना पड़ जाएगा सोचा न था।
जिससे मिलते थे उसे अपना समझ लेते थे।
कोई यैसे पीठ में छुरा घोंप जाएगा सोचा न था।
वक्त इस मोड़ तक ले आएगा सोचा न था।
एक दिन अपनों से ही सामना हो जाएगा सोचा न था।
बड़ा नाज था हमे उसकी वफ़ा पर।
वो इस तरह बीच रस्ते छोड़ जाएगा सोचा न था।
कहते हैं कि हर जख्म वक्त भर ही देता है।
वक्त खुद येसा जख्म दे जाएगा सोचा न था।
वक्त इस मोड़ तक ले आएगा सोचा न था।
एक दिन अपनों से ही सामना हो जाएगा सोचा न था।
अबरार अहमद, दैनिक भास्कर, लुधियाना

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अइयइयो,अबरार भाईजान तुम कितना अच्चा अच्चा बात बोला पर अप्ने को ये बडास कुच-कुच इन्दी फ़िलम के गाने के माफक लगता जी....

यशवंत सिंह yashwant singh said...

अबरार भाई, जीवन चक्र है, कभी उपर, कभी नीचे। अच्छे दिन जरूर आएंगे साथी...

यशवंत