प्रेम बनाम भड़ास
'तुम मिले हो क्या मुझे साथी सफर में
राह से कुछ मोह जैसा हो गया है
एक सूना पंथ की जो मन को ड्सें था
रह में गिर कर कहीं वो खो गया है
शोक को उत्सव बनाया बस तुम्ही ने
उम्र भर एहसान भूलूंगा नही मैं
मस्ती बनाम यशवंत
''न लगे जाम पर हाथ ये ,शर्त है
मयकदे को जो जाय वो कम्जर्फ़ है
मुझे तोहमत न दो मैं शराबी नही
तुम नजर से पिलाओ तो मैं क्या करूँ ''
इश्क और इमान में तक्रिफ है
मगर मेरा तो दोनों में इमान है
खुदा को मनाने तो मैं सजदे करूँ
मगर सनम रूठ जाय तो मैं क्या करूँ....''
जय भडास
जय यशवंत
मनीष राज बेगुसराय
1 comment:
मनीष भाई,हृदय से धन्यवाद स्वीकारिए क्योंकि आप मानव इतिहास के सबसे बड़े भड़ासी ओशो का नाम भड़ास पर लेकर आए । भड़ासियों के लिए तो बस इतना ही कि "आनंद आमार जाति ,उत्सव आमार गोत्र ",जो भड़ास की सरलता और सहजता को आत्मसात कर पाएगा उसके लिए हर दिन होली जैसा रंग-बिरंगा ,आह्लाद और खुशियों भरा व हर रात दिवाली की तरह रौशन और उल्लासमय होगी ।
जय भड़ास
जय यशवंत
जय मनीषराज
जय क ख ग घ
जय च छ ज झ
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जय क्ष त्र ज्ञ
जय A B C....Z
पर हर हाल में जय जय भड़ास
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