मीडिया में दलितों और महिलाओं की स्थिती को लेकर चल रही बहस का बाज़ार खासा गरम नज़र आ रहा है ,लेकिन लगता है की ये बहस मूतो कम और हिलाओ ज्यादा की तर्ज़ पर चल रही है मीडिया और ब्लोगिंग की दुनिया की नामचीन शख्सियतें इसमे हिस्सा ले रही है लेकिन न तो किसी के पास इसे लेकर कोई हल नज़र आ रहा है न ही पहल की कोई सम्भावना दिखाई दे रही है फ़िर भी इसे च्विन्गम की तरह चबाया जा रहा है है अब इस बेस्वाद हो चुकी च्विन्गम को थूक दें तो ही अच्छा है क्योकि थोडी देर के लिया मुह की एक्सेर्सिज के लीए जो चिव्न्गम चाबनी शुरू की गई थी अब वो सिवाए जबडों में दर्द के कुछ और नही दे रही है
16.2.08
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1 comment:
फ़सादी भइया,ये हिलाने वाले लोग ही हैं आपको नहीं पता कि इन्हे बकरचुद्दई करने का मधुमेह है ।
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