प्रोफेशनल लोगों से बच कर रहने की सलाह भी शायद एक व्यवसायिक बुद्धि की ही उपज है कदाचित । फिलहाल बस इतना ही कहना है कि हम जो मानते हैं वही सत्य होता है जो सत्य(?) है उसे मानना या न मान पाना भी रचयिता के हाथ में हैं । हां ,मैं आपकी परिभाषा का भड़ासी नहीं हूं । मैं ही क्या हम सब बहुत अच्छे अभिनेता हैं । अब बस करता हूं
जय श्री राम
जय भद्र आस
10.2.08
जय भद्र आस
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1 comment:
अच्छा किया, भड़ास निकाल दिया, मन का गुस्सा बाहर आ गया। अभी तो दोस्ती की शुरुवात है, आगे आगे देखिये होता क्या है। बहुत कठिन है डगर पनघट की......
यशवंत
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