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11.2.08

हम भी हुए वहीं जो आप हैं

मोहब्बत जो न कराए ,
आख़िर हम भी हुए वही जो आप हैं । यसवंत जी ने कहाँ न कहाँ से पहले मेरी एक कविता खोजी , फिर मुझे भी पकड़ लिया , बताएं इस नेह से कोई भागे तो जाये कहाँ , किस गली में जाकर मुँह छिपाये और वो भी भला क्यों / नेह की तो मारी यह दुनिया ठहरी , मिलती कहाँ है और जो मिल जाये मुँह की लगी छूटती भी कहाँ ? तो इसी नेह में हुए हम , मिले दारू पी और उनके घर जाकर आराम किया , रात गुजारी । सोचिये पहली बार मिले और कहाँ से कहाँ पहुंचे , नेह बड़ी चीज है गुरु । और नशें में मिलें जब दो यार तब kya gujri hogi? ek puri kahnee hai sunaunga kabhee. filhal ki ab bhadaasiyon men hm mila krnge?

1 comment:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

स्वागत है हरे प्रकाश जी। आपके भड़ासी बनने से हम भड़ासियों के गोल गैंग को काफी मजबूती मिली है। आपने जो कविता लिखी है, वो सच्चे तौर पर इतनी बेहतरीन कविता है कि हम दिल से आपको बधाई और धन्यवाद देते हैं। उम्मीद है आप लिखते रहेंगे।
यशवंत