ये जो आदमी नाम का जीव है न मेरे भाई
सचमुच बड़ा अनोखा है
और चूंकि उसे पहचानना मेरा पेशा भी है और शौक भी
तो मैंने कोशिश की है और नतीजे आप को सुनाता हूँ..............
तो मुलाहिजा फरमाइये साहिबान
यहाँ कुछ लोग दुष्यंत कुमार के चेले हैं,
पूरी जवानी अपनी गुंडई और हरामीपने को
दुष्यंत की कविताओं की आड़ देने वाले ये लोग
साये में धूप को छाती से चिपकाये हुए
सुविधाओं से लैस जीवन के बीच
कभी-कभी दौरा पड़ने पे
व्यवस्था के ख़िलाफ़ वमन करते हैं और सो जाते हैं
यहाँ कुछ extreemist मार्क्स के चेले हैं
उन्होंने खोल रखे हैं NGO
सरकारी दफ्तर में ग्रांट के लिए
बाबू को तेल लगाने के बादजो उर्जा बच जाती है
उसका उपयोग वे रात में बिस्तर पर
अपनी स्वयमसेविकाओं के साथ क्रांति करने में करते हैं
ये क्रांतिकारी लिखते हैं प्रेम की कवितायें
जिनमें होता है अफ़सोस अतृप्त कामनाओं पर
उनमें के एक दारु पीकर बड़ी मासूम सी कसम खाता है
कि उसने अपनी प्रेमिका के साथ
(जो अब किसी और की ब्याहता है) कभी सम्भोग नही किया..
बगल में रहता है एक समाजवादी
जो साम्यवाद और समाजवाद पर रिसर्च कर रहा है
वह बहुत तार्किक है और चीजों के प्रति
निरपेक्ष नजरिया रखता है
उसकी प्रेमिका ने दहेज़ के चलते
उसके सबसे करीबी दोस्त के विवाह कर लिया है
इसे वह चयन की स्वतन्त्रता का मामला बताता है
और भविष्य को लेकर बहुत आशान्वित है
एक धडा कट्टरपंथियों का है जिनको गान्ही से समस्या है?????
गान्ही बाबा ने उनको पचास साल पीछे धकेल दिया
ऐसा उनका आरोप है
बहरहाल शहर में बाकी सब ठीकठाक है .........
7.2.08
सुन भाई sadho
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2 comments:
बढ़िया है संदीप जी, आपके नतीजे को और विस्तार से सुनने की तमन्ना है।
यशवंत
संदीप भइया,क्यों लोगों की पतलून खींच-खीच कर दिखा रहे हो कि किसकी चड्ढी कितनी फटी है लेकिन अगर यही आपका काम है तो प्रभु जरा चड्ढियां भी सरका कर बताओ कि कौन कितना मर्द है और कौन ’हिज(ड़ा)हाईनेस........??????
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