राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य एवं वरिष्ठ साहित्यकार डा. अस्तअली खां मलकाण की लेखनी 2 अक्टूबर को थम गई। डीडवाना के साहित्य जगत के चमकते सितारे डा. मलकाण का हृदयघात के कारण जयपुर के दु्र्लभजी अस्पताल में निधन हो गया। वे 69 वर्ष के थे। मौन तपस्वी के नाम से चिर-परिचित आभा नगरी के वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद् डा. मलकाण के निधन की खबर मिलते ही नगर में शोक की लहर दौड़ गई। उन्हें ईद की नमाज के बाद डीडवाना के कायमखानी कबिऱस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। डा. मलकाण के आखिरी सफर में नगर व आस-पास के सैंकड़ों लोगों ने शिरकत कर श्रद्धासुमन अर्पित किए।
राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर की ओर से गणेशीलाल व्यास उस्ताद पुरस्कार से सम्मानित डा. मलकाण की डेढ़ दजर्न कालजयी कृतियां छप चुकी है। कई गऱंथ पऱकाशन की कतार में है। उन्होंने राजस्थानी साहित्य में सतरंगी इन्दऱधनुष की भांति सभी विधाओं में अपनी छटा बिखेरी। उनका 'रामापीर' (महाकाव्य) साहित्य जगत में खासा चर्चित रहा था। वहीं 'धरम री जीत' (खण्ड काव्य) में भी उन्होंने अमिट छाप छोड़ी। शिक्षा विभाग में बतौर पऱाध्यापक 38 वर्ष सेवाएं देने वाले डा. मलकाण को राजस्थानी विकास मंच संस्थान जालोर से डी.लिट. की मानद उपाधि से भी नवाजा गया था। वर्तमान में वे गऱामोत्थान विद्यापीठ, डीडवाना में सेवारत थे। डा. मलकाण के निधन पर डीडवाना के साहित्य पऱेमियों ने गहरा दुःख व्यक्त किया है।
7.10.08
डा. मलकाण नहीं रहे
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment