देश में इस समय राजनीति का माहौल चकाचक है। 'नोट के बदले वोट कांड' एक बार फिर से गर्म है। करार के लिए बेकरार पीएम सफल होते जान पड़ रहे हैं। आतंकवादी अपने तरीके से होली-दिवाली मना रहे हैं। पक्ष और प्रतिपक्ष मुखर हैं। चुनाव सन्निकट हैं। दुन्दुभी बज चुकी है। कुल मिलाकर चुनाव लायक माहौल है।
भारतीय लोकतन्त्र में वोट-नोट, सीडी-स्टिंग, कट्टा-कारतूस की मुकम्मल जगह बन चुकी है। अब यह राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति के औजार बन चुके हैं। वर्तमान में अमर सिंह इसके इंजीनियर जान पड़ते हैं। कोई दुविधा नहीं कि अमर सिंह जी कुशल कारीगर और कुशल अभियन्ता हैं। वोट और नोट के बीच वह सेतु का कार्य करते हैं। उनकी महिमा अपरम्पार है। वह खुद सेतु भी हैं और उसके अभियन्ता भी। समकालीन राजनेताओं ने उनका लोहा मान लिया है। उमा भारती सरीखी नेता के ‘कर कमल’ में स्टिंग की सीडी थमाकर उन्होंने वाकई कमाल कर दिया। इतने भर से ही वह चुप बैठने वाले नहीं हैं। हाल ही में उन्होने अपने कारीगरी का एक और नमूना पेश किया। कांड के मुख्य गवाह हस्मत अली को ही पुलिस के हवाले कर दिया। बहुत ही मनोरंजक ड्रामा था। मीडिया को फेवर में करने के लिए प्रणाम और स्तुति गान किया। अमर सिंह वास्तव में बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। कुशल अभियन्ता होने के साथ-साथ वह एक कुशल हास्य अभिनेता भी हैं। इस कैटेगरी में उनकी रैंकिंग नम्बर दो की है। पहले पायदान पर वरदान प्राप्त लालू है। हालांकि अमर सिंह उनको कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने शिवराज पाटिल की मिमिक्री कर डाली। इस मिमिक्री से पत्रकारों और आम जनता का मनोरंजन तो हुआ लेकिन खुद अमर सिंह सांसत में फंस गए। गृहमन्त्री और कांग्रेस कुपित हो गई। ड्रामे का अनापेक्षित अन्त हुआ। हस्मत को दिल्ली पुलिस ने छोड़ दिया। अब वह असलियत बयां कर रहा है। अमर सिंह पर संगीन आरोपों की बरसात कर रहा है। मीडिया अमर के चक्कर में नहीं फंसा। अमर की शिकायत का उल्टा असर हुआ। अब देखना है कि हस्मत की शिकायत को पुलिस कितनी संजीदगी से लेती है। वैसे उसके लिए कोर्ट का दरवाजा भी खुला है। ऐसी स्थिति में मेरी चिन्ता का आर-पार नहीं है। मैं ज्यादा चिन्तित मुलायम सिंह को लेकर हूं। धरतीपुत्र मुलायम सिंह को लेकर। लगता है पहलवान पर बुढ़ापा हावी हो रहा है। वह अमर सिंह की बैशाखी लेकर चलने को मजबूर हैं। मुलायम उसी पुराने तरीके से जिलाध्यक्षों और कार्यकर्ताओं की बैठक कर लाठी-डंडा, जेल-बेल की तैयारी कर रहे हैं। उधर अमर सिंह दिल्ली में माल काट रहे हैं और कैमरों के सामने चमका रहे हैं। अब तो अमर सिंह ने सार्वजनिक रूप से कहना शुरू कर दिया है कि मेरे आगमन से पहले सपा उमाकान्त यादव, रमाकान्त यादव सरीखे गुण्डों से पहचानी जाती थी। मुलायम मौन हैं। बागडोर अमर के हाथों में है। राजनीति के एक कद्दावर की टोपी उछल रही है। मुलायम के मुस्लिम तुष्टीकरण और यादववाद की आलोचना उचित ही है। लेकिन मुलायम उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक जनाधार वाले नेता भी हैं। किसानों, छात्रों तथा गरीबों की मदद करने की उनकी अपनी विशिष्ट स्टाइल है। उनके राज की गुण्डागर्दी को याद करके रोम-रोम अवश्य सिहर उठता है लेकिन अमर सिंह जैसे योजनाकारों के रहते हुए शुभ की आशा भी नहीं की जा सकती।
जामिया का फैसला देश के शेष विश्वविद्यालयों के लिए नजीर बन सकता है। तमाम विश्वविद्यालयों के कुछ छात्र जरायम पेशा हैं। हत्या, अपहरण और लूटपाट के मामलों में छात्रों की गिरफ्तारी आम है। जामिया के फैसले से ऐसे छात्र राहत महसूस कर सकते हैं। सम्बन्धित विश्वविद्यालय या कॉलेज अब उन्हें कानूनी मदद दे सकते हैं। जामिया ने नजीर स्थापित की है। वह भी तब जब उसके दो छात्र आतंकवादी घटनाओं के सिलसिले में गिरफ्तार किये गये हैं। एक तरफ तो उसने इन दोनों छात्रों को निलम्बित भी कर दिया है, वहीं दूसरी तरफ इनकी बचाव में भी आ खड़ी हुई। जाहिर है कि निलम्बन दिखावटी है। जामिया का फैसला संकेत करता है कि उसे बटाला हाउस की मुठभेड़ पर यकीन नहीं है। अर्जुन सिंह ने भी जामिया के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। स्पष्ट है कि सरकार को अपने किये पर पछतावा है। आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई पर अब वह पश्चाताप करना चाहती है। रामविलास और फातमी भी राजनैतिक स्यापा कर रहे हैं। बकौल फातमी “कानूनी सहायता उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है।“ फातमी साहब ने सही फरमाया। कानूनी सहयोग सरकार का ही दायित्व है। न्यायालय के आदेश पर ऐसा करना सरकार की जिम्मेदारी है न कि जामिया की जिम्मेदारी। उसे आतंकी और तालबीन के बीच फर्क अवश्य मालूम होगा। कुछ चीजों को कानून के सत्यापन की आवश्यकता नहीं होती। समय आने पर चीजें खुद-बखुद स्पष्ट हो जायेंगी। लेकिन मैं ख्वामख्वाह चिन्तित हूं। कबीर भी चिन्तित थे 'सुखिया सब संसार है खाये अउ सोवे, दुखिया दास कबीर है जागे अउ रोवे। ' दरअसल मेरी चिन्ता इस समय मुलायम सिंह को लेकर है। भविष्य के बारे में पता नहीं।
वेद रत्न शुक्ल
bakaulbed.blogspot.com
1.10.08
दुखिया दास कबीर है...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
kabir jaisa koi nahi
Post a Comment