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9.10.08

व्योमेश की कवितायें :आज का रावन

कल रामलीला में रावन मरने के पहले हंश रहा था
पहले तो मैंने सोचा वो कोई माया फैला रहा है
लेकिन बात दूसरी थी , समस्या कुछ रहस्यमय लग रही थी
मैंने सोचा , क्यों न रावन से ही समाधान पूछ जाय
क्योंकि डर था की उसके मरने के साथ ये राज भी कही दब न जाय
मई रावन के पास पहुँचा ,पूछा " भाई , तुम हंस क्यो रहे हो?
वो मुझे घुर, फिर बोला " हाँ , मई हंस रहा हंस रहा हूँ
तुम इंसानों के बेवकूफी पे औ अंधेपन पे
तुम सब मुझे जला के खुश होते हो
पटाखे बजाते हो, फुलझरियां चलते हो
पर ये भूल जाते हो
मै tओ सल् मै एक बार पैदा होता हूँ
पर तुम मै तो हर रोज कई कई
रावण जन्मते है हर रोज
फ़िर भी तुम उन्हें छोर मुझे जलाते हो
तुम समझाते हो की तुम्हारे सी राम मुझे मारते है
अरे नही, मई तो ख़ुद ही मर जाता हूँ
आज जब देश मै हर पल एक रावन जन्मता है
देश मै दुराचार,आतंकवाद पलता हो
रोज ही देस की जनता भूखी प्यासी हों
ऐसे मै मै जानबूझ कर मरने आता हूँ
इसी बहाने गरीब लाचार जनता को थोडी खुसी तो मिल जाय
नही तो आज के हालत मै राम के बजे रावण लीला होनी चाहिए
और तुम्हे सोचना चाहिए की जब हर पल यहाँ रावन जन्मते हों
ऐसे मै ये कैसे सम्भव है की रावन
भी कभी यहाँ मर सकता है?

1 comment:

Anonymous said...

व्योमेश भाई,
बहुत शानदार लिखा है आपने, सच में सच्चाई का आईने है.
आपको बधाई