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12.10.08

क्या है आतंकवाद .....?

क्या है आतंकवाद...........?
पश्चिम द्वारा इजाद किये आतंकवाद (terrorism)नामक शब्द को अब सीधे तौर पर इस्लाम का पर्याय माना जाने लगा है.जबकि मुस्लिम बुद्धिजीविओं से लेकर आम मुस्लिमो तक का मानना है कि तथाकथित आतंकवाद का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं आतंकवादी कार्यवाई शरियत के खिलाफ,नाजायज़ और मजम्मत के लायक है.इसलिए इन गतिविधियों में लिप्त लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए ऐसी कार्यवाइयों के वजूहात चाहे सही और माकूल ही क्यूँ न हों हिंसा और खून-खराबे की इजाज़त बहर हाल किसी को नहीं दी जा सकती क्योकि यह भी आतंकवाद है.मोटे तौर पर इससे यही समझा जा सकता है कि इस्लाम का आतंकवाद से कोई रिश्ता नहीं है और न ही वह इसकी इजाज़त देता है.हालाँकि इस पूरी बहस में सबसे रोचक बात यह है कि जिस बुनियाद पर पूरी ईमारत खड़ी की गयी है.अभी तक यही तय नहीं हो पाया है कि वह आखिर क्या है....?आतंकवाद कि परिभाषा को लेकर जितने मुह उतनी बातें लेकिन मोटे तौर पर हर वह कार्यवाई आतंकवाद है जिसमे हिंसा (violence)पाई जाती हो,जिसमे खास लोगों के साथ आम लोग(civilian) या गैर जंगजू लोग(non.combatant)भी मारे जाएँ या घायल हों या उनकी धनसम्पदा को नुकसान पहुँचता हो.और ऐसी हिंसात्मक कार्यवाई के लिए किसी कानूनी इदारे से इजाज़त न मिली हुई हो.लेकिन सवाल ये उठता है कि ये लागू किस पर होता है अगर कुछ लोगो के गलत होने से पुरे संप्रदाय को निशाना बनाना ठीक है तो दुसरे संप्रदाय के कुछ संगठनों द्वारा समय समय पर देश के विभिन्न कोनो में एक धर्म या जाति विशेष का किया गया जनसंहार किस श्रेडी में आता है क्यूँ उसको क्रिया की प्रतिक्रिया बताया जाता है....?(जैसा गुजरात दंगों के विषय में कहा जाता है) उडीसा में विहिप नेता स्वामी लक्ष्मदानंद सरस्वती और चार अन्य लोगों की हत्या नक्सलियों ने कर दी थी.और ये बात सभी को मालूम थी पुलिस पहले ही दिन से ये बोल रही थी लेकिन बी.जे.पी. बजरंगदल विश्व हिन्दू परिषद् जैसे 'कथित देशभक्त' संगठनों ने उडीसा में हिंसा का नंगा नाच शुरू कर दिया.....हत्या, लूट, बलात्कार,और न जाने क्या क्या....!इन तथाकथित देशभक्त संगठनों के नेता बराबर सरस्वती जी के हत्त्यारों की गिरफ्तारी की मांग करते रहे लेकिन हिंसा को ये कहकर समर्थन देते रहे की इस घटना को ईसाईयों ने अंजाम दिया है और हमारे कार्यकर्ता बदला ले रहे हैं.लेकिन अभी तक जगह जगह चीखते चिल्लाते हिंसा को समर्थन देते इन नेताओं की बोलती बंद है.वजह ये है की उडीसा का सबसे वांछित नक्सली नेता 'सब्यसाची पंडा उर्फ़ सुनील' ने एक निजी न्यूज़ चैनल के द्वारा इस हत्या की जिम्मेदारी ली है.वजह ये बताई की सरस्वती जी वहां सामाजिक अव्यवस्था फैला रहे थे वजह चाहे जो भी हो लेकिन जो हुवा ठीक नहीं हुवा लेकिन इसका ये मतलब नहीं की आप किसी को जिम्मेदार मान कर उस पूरी जाति या धर्म को निशाना बनायें क्या ये आतंकवाद नहीं है. लेकिन अब सवाल ये उठता है कि पंडा उर्फ़ सुनील किस जाति या धर्म से ताल्लुक रखता है और कंधमाल में जो सैकडों इसाई मारे गए और इन तथाकथित देशभक्तों ने औरतों लड़कियों का बलात्कार लिया उनको जिन्दा जलाया क्या वो सब देश-द्रोही थे अब जबकि हत्यारा खुद सामने है तो क्यूँ नहीं उसको पकड़कर सजा देते क्यूँ बेक़सूर देशवासियों का खून बहाया जा रहा है उनकी बहेन बेटियों कि इज्ज़त को तार तर किया जा रहा है क्यों.....?और इन तथाकथित देशभक्तों को याद दिलाना होगा कि चर्चित संत ज्ञानेश्वर हत्या कांड किसने किया किसने करवाया वहां क्यों हिंसा नहीं हुई क्या वहां देश भक्ति सोई थी या डर लग रहा था वहां किसी ने आवाज़ नहीं उठी कोई हिंसा नहीं हुई इस तरह का दोहरा मापदंड क्यों.....?क्या सिर्फ इसी लिए देश भक्ति जैसे शब्द को गन्दा किया जा रहा है और खुद का हित साधा जा रहा है वैसे हित साधने से याद आया 'अडवानी जी' की पाकिस्तान यात्रा की थोडी चर्चा हो जाये वहां अडवानी जी ने जिन्ना को सेकुलर क्या कह दिया अपने देश अपनी ही पार्टी जिसको हाथ पकड़ कर चलना सिखया और वो संगठन जो उनके ही रहमो करम पर पल रहे हैं ने उनको देशद्रोही तक बना दिया संघ ने तो उनका इतना विरोध किया की बेचारे रो पड़े लेकिन संघ ने ऐसा क्यूँ किया ये समझ से बाहर है शायद ही संघ का कोई बड़ा नेता ये न जानता हो की उनके नेता डाक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी १९३५ में व्यक्तिगत या राजनैतिक स्वार्थों या अवसरवादिता का परिचय देते हुवे मुस्लिम लीग के समर्थन से ही वित्तमंत्री बन बैठे थे डाक्टर मुखर्जी आज भी देशभक्त कहे जाते हैं तो अडवानी जी को माफ़ी मांगने पर मजबूर होना पड़ा क्यों.....?इसी के साथ थोडी चर्चा कर्नाटक की हो जाये वहां धर्मंतारद को मुद्दा बना कर देशभक्त बजरंगियों ने तबाही मचाई हुई है जाँच हुई कहीं भी धर्मान्तरण की पुष्टि नहीं हुई १७ बजरंगी जेल की हवा खा रहे हैं इन सबके बीच कानपूर में एक हादसा हुवा बम बनाते हुवे धमाके में दो लोग मर गए जाँच में पता चले की वो भी तथाकथित देशभक्त संगठन से जुड़े थे पर आज तक ये पता नहीं लग पाया की वो बम क्यों बना रहे थे.और उनका इरादा क्या था.इसी बीच रास्ट्रीय अल्पसंखक आयोग ने बजरंगदल पर प्रतिबन्ध की शिफारिश करके गलत किया..?गो-हत्या के मुद्दे पर यही कहूँगा कि चमड़े के कारोबार पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये तो गो-हत्या अपने आप बंद हो जायेगी अब सवाल ये उठता है कि देश में चमड़े के बड़े कारोबारी किस धर्म से हैं किसी से ढाका छुपा नहीं है लेकिन उनके खिलाफ बोलने कि हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा है क्यों...?क्या हमें इन सवालों के जवाब कभी मिल पाएंगे दोस्तों...............

1 comment:

Anonymous said...

बेहतर लिखा है,
जारी रहिये, विचार में क्रान्ती होनी चाहिए और इमानदारी भी,
आपको बधाई