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16.2.08

बाप रे, भागो, साले बहसिया रहे हैं...

दलित, चमार, स्त्री, महिला, जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, नौकरी, चाकरी, पैसा, गुलामी, बौद्धिक जुगाली, भाषणबाजी, खुजली, किचकिच, वामपंथी, दक्षिणपंथी, जातिवादी, पोंगापंथी, कट्टरपंथी, मौला मुल्ला, पतरा पोथी, धोती, जनेऊ, गेहूं, खेती, गांव, शहर, किसान, अफसर, उद्योग, सरकार, लाचार, प्रचार, बाजार, शेयर, ब्लाग, अखबार, टीवी, मीडिया, चैनल, पैनल, बुद्धिजीवी, फुद्दिजीवी, मीटिंग, बैठक, बहस, विमर्श, मार डालो, काट डालो, लिख डालो, फाड़ डालो, आरोप लगा दो, तेल लगा दो, जातिवादी, आरोपवादी, किसान, परेशान, माल, जगमग, कार, साइकिल, हाथी, पंजा, राजनीति, नेता, कविता, साहित्यकार, ज्योतिष, अधविश्वास, विज्ञान, देश, दुनिया, विकास, सभ्यता, इतिहास, ब्र्ह्मांड, फैशन, फिल्म, जूता, हथियार, क्रांति, माओ, वेद, ग्रंथ, हिंदू, मुस्लिम, चमार, पंडित, ठाकुर, बाभन, बनिया, पिछड़ा, तेल, रुपया, गाली, मक्खन, कुत्ता, बिल्ली, सियार, शेर, पादना, हगना, मूतना, सोना, उठना, कार, गाड़ी, बल्लम, भाला, चोर, चाईं, साईं, साधो, संत, बाबा, मंदिर, कुरान, सिख, कृपाण, दलिम, मंडल, मसीहा, अंबेडकर, सत्ता, विचार, लिखो, हगो, उगलो, पादो, पटाओ, बनाओ, कमाओ, लगाओ, दिखाओ, छुपाओ, बुझाओ, सुलाओ, पिलाओ, पेलो, खाओ, पाओ, सुनो, गुनो, लड़ो, झुको, बढ़ो, रुको, संभलो, देखो, रेडलाइट, रोड, ट्रैफिक, विकास, खेल, खिलाड़ी, राजनीति, चमार, सियार, बाभन, बाछी, ठाकुर, मुसहर, नट, नकार, कवि, बुद्धिजीवी, साहित्यकार, तीज, त्योहार, उल्लास, सांझ, सवेरे, रात, दिन, आंसू, दुख, मनुष्य, मानवता, भिखारी, भिखमंगा, सड़क, पागल, गायक, ढोलकिय, तलबची, मास्टर जी, गाना, खाना, पीना, सोना, उठना, मुन्ना, मम्मी, चाचा, चाची, परिवार, खानदान, समाज, देश, दक्षिण टोला, पश्चिम टोला, कस्बा, परिवार, हींग, नून, तेल, मछरी, मक्खी, आदमी, धनी, गरीब, हिंदू, मुस्लिम, अगड़ा, पिछड़ा, विदेशी, प्रगतिशील, कट्टरपंथी, दक्षिणपंथी, सामाग्रजवादी, कीबोर्ड, चप्पल, जूता, मचमच, खिचखिच, किचकिच, चुप्प, बोल, रो, गा, खा, पी, बोल, कर, नौकरी, चाकरी, किसानी, मेजबानी, दारू, भांग, स्मैक, गांजा, चिलम, चींटी, सभ्यता, दिन, महीना, शाम, रात, डाक्टर, इंजीनियर, डिप्रेशन, कुंठित, उत्साही, घाघ, चालाक, कमीना, इमानदार, साफ, सहज, सरल, सत्य, झूठ, हाथी, पूंछ, अनाम, विद्वान, नाम, दाम, मकान, दुकान........

और फिर शुरू हो जाओ...चमार, सियार, बाभन, ठाकुर, बाछी, कुक्कुर, गरीब, मुन्ना, मम्मी, नोट, तेल, बुद्धिजीवी, फुद्धिजीवी....

बाप रे......भागो, साले बहसिया रहे हैं........

जय भड़ास
यशवंत

5 comments:

azdak said...

केतना बुद्धि रक्‍खे हो, मुन्‍ना? अऊर का-का रक्‍खे हो?

दिलीप मंडल said...

शानदार भड़ास। हम आपके फैन ऐसे ही नहीं हैं। कई बार गहरी बात व्यंग में ही कही जा सकती है। राजकिशोर जी कह रहे हैं देश की गंभीर समस्याओं को व्यंग के अलावा किसी और तरीके से शायद नहीं लिखा जा सकता। आपका व्यंग अंदर तक चुभा है। असर देर तक रहेगा। शुभकामनाएं।

जेपी नारायण said...

आरोप लगा दो, तेल लगा दो...
हर शब्द शब्दबेधी

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

का दिलीप भइया ,तनी ई तो बताएं कि असर केतनी देर तक रही और फिन ओहई ढर्रा पे आए जइहो ; एकर मतबल त ई भवा कि फिन गम्भीर होइहा?

subhash Bhadauria said...

यशवंतजी
वो गाली भी देता है तो लगता है दुआ देता है.
आप ठीक पकड़े यार टे बहसिये बौरागये है अच्छे डंडे लगाये आप ने चूतड़ों पे पर कमजर्फ़ समझेंगे नहीं इन्हें डंडो की नहीं खस्सी करने की ज़रूरत है.
कभी जाति कभी धर्म अभी स्त्री पुरष के नाम पर
बौराये हैं.ये सब आ जा फंसाजा वाले समझते है ज्ञान की गंगा इनकी अगाड़ी पिछाड़ी से बहती है.

जियो मेर लाल बलैयां लेलूँ.काला टीका करो यार भड़ासियों लौंडे को नज़र न लग जाओ. भाई मज़ा ला दिये.
अल्लाह करें जोरे कलम और ज़्यादा.