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6.2.08

दिल को छू गयी कविता

हरेप्रकाश उपाध्याय जी, बहुत दिनों बाद कोई कविता इतनी प्यारी लगी कि दिल से कहने को मन हो रहा है कि वाकई, आपने जो लिखा है वो सौ फीसदी सच है। बुरे लोग ही हमेशा काम आए। आपको मेरी तरफ से ढेर सारी बधाइयां। भड़ास तो धन्यवाद, जो इतनी शानदार कविता यहां लगा रखी है, ये वाकई सर्वश्रेष्ठ कविता है।

विनोद सिंह

1 comment:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

सिंह साहब, यकीन मानिए कि यह कविता सिर्फ़ दिल को ही नहीं बल्कि लीवर ,किडनी ,फेफड़ों और न जाने किन किन पुर्जों को छू रही है तभी तो भड़ास के बगल में चिपकी है.....
जय भड़ास