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10.2.08

कौन हैं ये डाक्टर रुपेश? ...उनका गोबर भड़ास पर डाल रहा हूं

((डाग्डर साहब की निजी बातें सार्वजनिक कर रहा हूं....जो बातें वो बताने से टाल रहे थे, उसे एक निजी मेल के जरिए मुझे बताया। अपनी ज़िंदगी, बढ़ने, भटकने, पढ़ने, गुनने, सुनने, सोचने.....आदि के तरीके के बारे में....। उनसे अनुमति लेकर मैं निजी मेल को भड़ास पर डाल रहा हूं। और उससे पहले एक चैट, डाग्डर साहब के साथ, इस मेल के संबंध में। मुझे कई बार लगता है कि डाक्टर रुपेश कोई दैवीय ताकत तो नहीं हैं जो मानवीय शक्ल में यूं ही भटकने के लिए भटक-मटक रहे हैं। जो भी हो, डा. रुपेश जैसे बंदों से बड़ी उम्मीदें हैं, और इनसे मैं खुद भी प्रभावित हूं। पढ़िए, रुपेश जी का आत्मकथ्य...जय भड़ास, यशवंत))


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Chat with डा.रुपेश श्रीवास्तव
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16:01 डा.रुपेश: दादा, अपने बारे में कुछ अल्ल-बल्ल लिखा है पढ़ कर भूल जाईएगा
16:03 me: जरूर, अभी पढ़ता हूं

me: :) ये तो बहुत जोरदार है, इसे भड़ास पर डालने की अनुमति दीजिए......

16:07 डा.रुपेश: आप ये मेरा गोबर अगर भड़ास पर डालना चहते हैं तो डाल दीजिए..

me: इसे गोबर न कहें, मुझे गुस्सा आ रहा है......यह तो अद्भुत चीज है, जिसे लिख पाना करोड़ों अरबों में से किसी एक के वश की बात है

16:09 डा.रुपेश: अरे दादा आप को तो सांड के गोबर का महत्त्व पता है गुस्सा न करें और अगर आप ज्यादा खुश हो गए तो मैं तो इतना गोबर कर दूंगा कि गोबर गैस प्लांट लगाना पड़ेगा

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डा. रुपेश का आत्मकथ्य
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from rupesh shrivastava
to Yashwant Singh
date 9 Feb 2008 16:00
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दादा

आपके कई बार कहने पर भी मैंने जो बातें टाल दीं थईं वो थीं मेरे परिचय और चित्र से संबंधित ;कल फिर आपने इसी विषय पर बात करी और मैंने कहा कि मैं आपको मेल कर दूंगा । आगे जो भी लिख रहा हूं उसे बस एक गल्प-कथा ही मानिएगा वरना साधारण तरीके से चलती जिन्दगी तमाम उत्तर तलाशने लगती है । जैसे कि आप जानते हैं कि माता-पिता ने रूपेश नाम रखा ,हमेशा से पता नहीं क्यों ऐसा लगता रहता था कि दुनिया में कुछ तो जरूर गड़बड़ है जो दिख रहा है वह पूरा नहीं है । जब से होश सम्हाला तबसे यही बात अन्दर घुमड़ती रही । कक्षा में औसत से कुछ ऊंचा प्राप्तांक रहता था लेकिन मेरी कक्षाध्यापिका को पता नहीं मुझमें क्या खा़स नजर आता था पांचवी से लेकर आठवीं कक्षा तक मेरे साथ बैठ कर ही लंच करा करती थीं और फिर पास-आउट के दिन उन्होंने मुझे कह दिया कि मैं संस्क्रत भाषा का अध्ययन करूं । मैंने अपना शिक्षा का माध्यम बदल कर हिन्दी ले लिया और फिर शुरू हुआ मेरा विद्यार्जन का सही सफ़र इससे पहले तो बस पढ़ रहा था । संस्क्रत भाषा सीखी और व्याकरण से लेकर जितना भी मिला चाहे उपनिषद हों या संहिताएं चाट कर रख दीं पर मेरे सवाल ज्यों के त्यॊं बने रहे कि दुनिया में क्या गड़बड़ है जो मुझे महसूस होती है पर उसका स्पष्ट रूप समझ नहीं आता है । दसवीं उत्तीर्ण करके नारायण दत्त श्रीमाली से मिलने के लिये घर से निकल भागा एक पत्र रख कर कि अब कुछ जान कर ही आउंगा । पिता हमेशा से ही मुझसे परेशान रहते थे क्योंकि उनके पास कभी मेरे सवालों के उत्तर नहीं रहे । जोधपुर में नारायण दत्त श्रीमाली से तो मुलाकात नहीं हुई पर पैसे खत्म होने पर चार दिन श्मशान में रहा और वहां के डोम से जिन्दगी से जुड़ी बातें जानी । फिर घर वापस आ गया पिटने से बचा रहा क्योंकि घर के लोगों को लगा कि फिर न भाग जाए । संगम के किनारे रहने वाले अघोरी ददई से मुलाकात हुई और सवालों की गहराई और बढ़ गई क्योंकि वो आदमी केमिस्ट्री से एम.एस.सी. था ,जादूगर नहीं था उसके बदन पर बस एक अंगौछा और कंधे पर एक लाल रंग का झोला टंगा रहता था जिसमें दो हड्डियां रहती थीं और कुछ नही ; ददई बड़े लोगों से बात ही नहीं करता था ,बच्चों के संग तो रेत में खेलता भी था और छोटे बच्चों के मांगने पर झोले से कुछ भी निकाल कर दे देता था आफ़-सीजन फल या १०-२० पैसे । लेकिन ददई के झोले की हड्डियां अब पता है कि हाथों की हड्डियां थी ,मैने खुद अपने हाथ से उन दोनो हड्डियो को संगम के पानी में कितनी बार फेंका था लेकिन अगले ही पल वह फिर झोले में होती थी । ददई का कहना था कि पदार्थ और ऊर्जा का संबंध जो मायाजाल में दिखता है वैसा नहीं है वस्तुतः ये दो नहीं हैं लेकिन उस समय मैं इस बात को समझने के लिये छोटा था । समय बीतता गया पिताजी की चाहत ने बी.ए.एम.एस. तक पहुंचा दिया । स्टीफ़न हाकिंग का सेमिनार स्ट्रिंग २००१ में गया वो व्यक्ति ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के विषय में शोध कर रहा है । जहां एक ओर ब्रह्माण्ड की विराटता का अध्ययन होता जा रहा है दूसरी ओर हम इलैक्ट्रान से क्वार्क और अब मल्टी डायमेंशनल स्ट्रिंग्स तक आ गए ।

मुझे लगता रहा कि कुछ गड़बड़ है और जिन्दगी चलती जा रही है । फिर एक सत्य पता चला कि हम जो मानते हैं वह ही सत्य होता है न कि हम सत्य को मानते हैं और यही मायाजाल जो कि विराटतम साफ़्टवेयर है जिसके अंदर हम सब संचालित हो रहे हैं हमे उलझाए रहता है ,हम है छोटे-छोटे बायो कम्प्यूटर्स जिनके लिये मायाजाल विन्डोज़ और लिनक्स की तरह से है । शायद मैं अपनी बात को शब्दों मे नहीं बांध पा रहा हूं पर मैं यह जानता हूं कि एक दिन हमारा हार्डवेयर रखा रह जाता है बाकी लोग इस हार्डवेयर्स को रि-सायकल करने के लिये जमीन में गाड़ कर ,जला कर पंचतत्त्वों में मिला देते हैं । क्या आप कह सकते हैं कि जिस दुनिया में हम हैं वह सत्य है स्वप्न नहीं । एक दिन मौत आकर सब बता देती है कि हम सब आटो डिलीट पर सेट किये प्रोग्राम्स हैं जो एक निश्चित अवधि के बाद डिलीट हो जाते हैं लेकिन अगर हम सत्य जान जाते हैं तो हम बूंद की तरह समुद्र में मिल कर खुद समुद्र बन जाते हैं लेकिन जो चमत्कारिक शक्तियां हममें आ जाती हैं वो भी मायाजाल का ही हिस्सा हैं । हम काम-क्रोध-लोभ में उलझे हुए जिए जाते हैं और एक दिन सब खत्म हो जाता है लेकिन गुरूशक्ति जब्बार ने बताया कि जैसे हम एक कम्प्यूटर का डाटा दूसरे पर ले जाते हैं वैसे ही सर्वात्मा "वात" के पांच विविध रूपों में से उनके पांच उपरूपों मे एक धनंजय यह डाटा अगले हार्डवेयर यानि शरीर में ले जाती है । मैं अब इस उठापटक से फ़्री हो चुका हूं अब तो बस मजे ले रहा हूं भावों को देखता हूं जो कि मायाजाल में खुद ही इस हार्डवेयर पर लोड रहते हैं और रचयिता से मजे लेता हूं मेरे और उसके बीच चल रही हुतुतू का । आज हमें सौ हजार अरब रुपए इल जाएं और खुशी से हार्ट फेल हो जाए और सिस्टम बंद............
क्या बटोरना है

? न नाम न पैसा न ही शान्ति ;बस होश कायम रखना है और खुद को जानबूझ कर सुअर बनाए इसी कीचड़ में थूथुन मारते लोटते रहना है जब तक ये हार्डवेयर न छूट जाए.........
करुणा भी एक उलझाव है बस थोड़ा मुलायम सा है बस बाकि सब काम जैसा ही तो है । जब आपने ब्लाग से धनोपार्जन की बात की थी तो मैंने कुछ नही बोला था अब कह्ता हूं धन आप रख लीजिए । मैं बस मस्ती कर रहा हूं एक बहुत बड़े प्लेटफ़ार्म पर मुझे किसी की कोई सहायता भी नहीं करना होता

,जब ईश्वर को खुजली होती है तो वह हम कठपुतलियों से कुछ भी मनचाहा करवाता रहता है । स्वामी ध्यान विस्तार से रुद्राक्षनाथ तक का सफ़र बकवास नही है......
इतना लिख कर भी शायद कुछ नहीं कह पाया बस समझने का जतन करिएगा

,नेति,नेति.....

आपका
डा.रुपेश

4 comments:

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ said...

भाईसाहब,आपने जितना लिखा है वह कुछ अलग नही है हकीकत से क्योंकि मैंने इस शख्स को देखा है । इस्लाम के खूंटे पर टंगी हूं वरना कह सकती थी कि ये बंदा नहीं है । आज छुट्टी है तो इनकी एक करतूत पोस्ट कर रही हूं फ़ुरसत है लेकिन फिर सचिन लुधियानवी कहने लगेंगे कि भड़ास में अब वो बात नहीं है ,मुझे नहीं पता कि पहले भड़ास में क्या बात थी और अब क्या कम है मुझे तो बस इतना अनुभव है कि अब मैं स्वस्थ हूं प्रसन्न हूं भड़ासिन हूं ।
भड़ास ज़िन्दाबाद

RC Mishra said...

संस्क्रत --> संस्कृत

यशवंत सिंह yashwant singh said...

डाग्डर साहब जुग जुग जियो, तुमको हमारी उमर लग जाए
यशवंत

Anonymous said...

जय भड़ास
का धन्वन्तरी भइया

आप तो पूरी जिनगी को साला MATRIX फ़िल्म बना दिए हैं |
रचियता, मायाजाल, और पता नही का का
ये तो सही है कब सब कुछ पूर्व निर्धारित है लेकिन शायद इस मायाजाल का ही प्रभाव है की हम इसे
स्वीकार नही कर पाते है | वर्ना एक सही शाश्वत सत्य है " मृत्यु"
शेष सब माया है |