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4.5.08

पत्रकार और उनका चरित्र ......... ?













मित्रों विशेषकर पत्रकार मित्रों माफ़ करना मगर क्या करूं भडास है सो निकाल रहा हू। किसी से मित्रता नही किसी से बैर नही मगर चेहरे से अनभिज्ञ भी नही। बात कर रहा हूँ पत्रकार की सो कसम भडास की सच ही कहूँगा क्यूंकि झूठे लोगों के बाड़े में सच कहने का बीड़ा मैने नही उठाया है मगर भडासी हूँ और भडास निकलना है। लिखने से पहले कह दूँ की आईने मैं मैंने अपनी तस्वीर पहले देखी है फ़िर लिख रहा हू।
अभी मैं अपने कार्यवश मुम्बई में हूँ और पता नही कब तक मुम्बई में रुकना पड़े, नौकरी जो करनी है, सवाल पापी पेट का है। बीते कुछ पुराने दिनों की याद है कि जितने पत्रकारों की शकल देखता हूँ कुछ टीस सी उठती है की मैं कुछ नही कर पाया।
मेरी एक मित्र हैं मैं नाम नही बताऊंगा जो की भारत के एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी समाचार पत्र की मुम्बई की वरिष्ठ संवाददाता हैं। पिछले साल की बात है वह एक संवाददाता सम्मेलन में गयीं थीं। उनके साथ और भी पत्रकार होंगे। वापस लौटते समय एक अन्य वरिष्ट संवाददाता ने उनसे आग्रह किया की चलिए मैं आपको रास्ते मैं छोरता आगे चला जाऊंगा। दोनों साथ चले , कमाल है मुम्बई की टैक्सी का भी; टैक्सी के चालकों को कोई सरोकार नही होता की पीछे बैठे सीट पर हो क्या रहा है। बहरहाल उन सज्जन ने मेरी मित्र के साथ टैक्सी में भारी दुर्व्यवहार किया जिसका जिक्र मैं यहाँ नही कर सकता। मुझे दूरभास पे सूचना दी , मैं ठहरा ठेठ बिहारी बड़े तैश में आ गया। अपने मित्र को सलाह भी दी की जाओ थाने में शिकायत दर्ज करो और उस बेहूदे ,कमीने रिपोर्टर को उसके ऑफिस में चांटा लगा के आओ। मगर वो ऐसा नही कर पायीं। और सब कुछ पूर्ववत् हो गया क्यूंकि हमारी मित्र उस कुत्सित घटना को भूल जाना चाहती थीं।
आज में मुम्बई में हूँ, नोकरी ऐसी की इन महानुभावों के ही दर्शन होना होता है। बड़ी तकलीफ में हूँ क्यूंकि मुझे सारे पत्रकारों में उसी की शकल दिखती है। लगता है की काश उसने मुझे बता दिया होता तो जय भडास स्स्स्साले की गांड मैं छ: पोर का बिना छिलल बांस कर की साले की साड़ी पत्रकारिता उसकी गांड मैं घुसा देता. वैसी मेरे लिए ये इनका चरित्र कोई नया नहीं है क्योँ कि मैने देखा है कि अपने सहकर्मी के प्रति इनके दिल दिमाग मैं क्या क्या होता है, सामने से हटने की बाद उनके शरीर के व्याख्यान, मुझे हमेशा से ही उलझन मैं डालती रही कि क्या अपने आप को मित्र बताने वाला ऐसा हो सकता है, संभव है सभी जगह ये ही होता होगा मगर मुझे सदा से ही इस पत्रकार शब्द ने ज्यादा परेशान किया है. देश का चौथा स्तंभ..... आम जन कि आवाज..... जनता के लुटेरे को पकड़नेवाला.... भ्रस्ताचार के खिलाफ लिखने वाले सर्वाधिक भ्रष्ट है ये बात ठाकुर जैसे पत्रकार के आने से जनता कि नजर मैं भले ही आती है मगर ना आये तो भी हैं तो सही।
चरित्रहीन.......................?
दयित्वहीन..............?
निष्ठाहीन..............?
कलंकित पत्रकार........

6 comments:

Anonymous said...

Dear Rajnish Ji,
aapne patrakarita ke jis charitra ka khulasa kiya hai wo aaj ka kadwa sach hai. bahut dukh ke saath kahna par raha hai ki humlog media mein rehkar bhi ye sab chupchap dekh rahe hain, sah rahe hain.

Kya aap wahi Rajnish ji hain jo Makhanlal University main mere senior thhe?? Rajnish Jha from Madhubani...??

Anonymous said...

Dear Rajnish Ji,
aapne patrakarita ke jis charitra ka khulasa kiya hai wo aaj ka kadwa sach hai. bahut dukh ke saath kahna par raha hai ki humlog media mein rehkar bhi ye sab chupchap dekh rahe hain, sah rahe hain.

Kya aap wahi Rajnish ji hain jo Makhanlal University main mere senior thhe?? Rajnish Jha from Madhubani...??
Vinay, Bhagalpur

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

जय हो भड़ासी भाई के तेवरों की !!
लग रहा है कि रजनीश भाई ने अपनी हिटलिस्ट बना ली है कि किसकी-किसकी में क्या-क्या कितना अंदर तक घुसा डालना है। अबे कुपत्रकारों अभी भी मौका है कि सुधर जाओ वरना हमारा भाई क्या-क्या घुसा देगा सालों कि लगेगा चलती फिरती कबाड़-भंगार की दुकान हो...
जय जय भड़ास

VARUN ROY said...

आप कहें रजनीश भाई तो एक दिन
भड़ास पर उक्त दुर्जन का बाकायदा
जुलूस निकला जाय.
जय जय भड़ास
वरुण राय

Anonymous said...

विनय भाई , मैं वो नहीं जिनका जिक्र आपने किया परन्तु हूँ मैं रजनीश ही और मधुबनी से भी. बस भडासी हूँ.....
रही बात सहने की तो मित्र मैं दुहरा दूं कोई सह नहीं रहा अपितु अपने आप को उस गलीज दोजख में शामिल होने में फख्र महसूस करता है. कहीं कोई आत्मग्लानी नहीं कोई पश्चाताप नहीं, पत्रकार हैं सो बड़े बहसबाज भी हैं और अपनी गंदगी को दुसरे पर थोपने में माहिर भी साथ ही समाज के नम्बरदार भी आखिर चौथा स्तंभ जो है.

और वरुण भाई जुलूस से आज तक किसी का कुछ हुआ है जो आप ऐसी बातें कर रहे हो. मैने तो बस एक चरित्र को आपके सामने रखा है और ये दोहरा चरित्र बहुत बड़ी तादाद में है, सफेदपोश शरीफों का.

sanjeev persai said...

जनहित मैं उस तथाकथित पत्रकार का नाम प्रसारित करें विश्वास करें वो फिर ऐसा किसी और के साथ नही करने की सोचेगा नही। यदि नाम नही बता सकते हैं टू हिंट ही दें उसे खोजे का काम हम सब कर ही लेंगे