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9.6.11

विष्णु - नारद संवाद

विष्णु- भूतल भ्रमण बहुत किये बिता दिए कुछ काल ।
नारद , जम्बुद्वीप का बोलो क्या है हाल ॥
नारद - लोभ ,क्रोध और वासना नाचें दे दे ताल ।
हे हरि , भारतवर्ष में विकट हुआ कलिकाल ॥
सदाचार सब लुप्त हैं , धर्म बड़ा बेहाल ।
हे हरि , भारतवर्ष में , विकट हुआ कलिकाल ॥
सज्जन अर्थाभाव में , दुर्जन मालामाल ।
हे हरि , भारतवर्ष में , विकट हुआ कलिकाल ॥
विष्णु - लुप्त हुए रामायण , गीता ?
याद नहीं भारत को सीता ?
सतयुग का स्वागत करें , करि कलियुग का अंत ।
इसी लिए तो भेजता रहता हूँ मैं संत ॥
नारद - 'कपट कलेवर कलिमल भांडे ' ।
नहीं उखड़ते संत उखाड़े ॥
तुम्हरी कीर्तन सन्तन गावैं । गली- गली में अलख जगावें ॥
रमलीला में धुनी रामावैं । दशों दिशा से भक्त बुलावें ॥
रात्रिकाल , पर , निशिचर धावैं । तें संतन को मारि भागावें॥
कुछ सन्तन अनशन करीं , कहै नहीं कछु खाहिं ।
नहीं उखाड़े उखड़ें मन-ही -मन पछिताहिं ॥
भूतल पर द्विज -धेनु का , नित है हा-हा कार ।
भारत भू पर छा गया भारी भ्रटाचार ॥ हरि हो भारी भ्रष्टाचार ........ ॥

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