Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

7.6.11

आईये आप भी लोकतंत्र की शवयात्रा में शामिल होईये-ब्रज की दुनिया

ram

मित्रों,भारतीय लोकतंत्र की स्थिति इसकी स्थापना के बाद से ही अत्यंत बिडम्बनापूर्ण रही है.जिस कांग्रेस पार्टी ने देश में लोकतान्त्रिक शासन की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाई उसी ने लोकतंत्र को छठी से पहले ही मौत के मुंह में भी धकेल दिया.नेहरु युग में ही यह नवजात बीमार हो गया.लोहिया की रोज-रोज की नुक्ताचीनी से परेशान होकर सरकारी खर्चे पर पंचसितारा जिन्दगी जीनेवाले नेहरु की कांग्रेस ने उन्हें जेल की अँधेरी कालकोठरी में इतने लम्बे समय तक और कुछ इस तरह से बंद रखा कि आम आमआदमी की उम्मीद लोहिया की मौत के साथ ही उसी समय लम्बी बेहोशी में चली गयी.कितनी बड़ी बिडम्बना है कि कुछ इसी तरह का व्यवहार पाकिस्तान की सरकार ने प्रख्यात शायर फैज अहमद फैज के साथ किया और उनकी कैदी जिंदगी को पाकिस्तान ही नहीं भारत के बुद्धिजीवी भी श्रद्धा के साथ प्रतिवर्ष याद करते हैं लेकिन भारत में ठीक उसी तरह के सरकारी दमन के शिकार डा.लोहिया को उनके घोषित अनुयायियों ने भी भुला दिया है.तभी से लोक पर तंत्र हावी हो गया और लोकशाही सिर्फ नाम की रह गयी.बाद में इस सुधरे बाप की बिगड़ी बेटी इंदिरा ने इस अचेत की १९७५ में बेवजह आतंरिक आपातकाल लगाकर हत्या कर दी.
              मित्रों,तभी से हम इस मरे हुए लोकतंत्र को उसी तरह सीने से लगाए घूम रहे हैं जैसे बंदरिया अपने मृत बच्चे को कलेजे से चिपकाकर इस उम्मीद में घूमती रहती है कि कदाचित उसके ऐसा करने से उसका बच्चा जीवित हो जाए.लेकिन ५ जून की आधी रात को सोनियानीत कांग्रेस ने लोकतंत्र के पुनर्जीवित होने की सारी संभावनाओं पर तुषारापात करते हुए इसकी शवयात्रा ही निकाल दी.इस रात कथित रूप से दुनिया के सबसे बड़े (मेरे अनुसार सबसे बुरे) लोकतंत्र की राजधानी दिल्ली ने वही सब देखा जो १३ अप्रैल,१९१९ को जलियांवाला बाग़ ने देखा था.इस बार वायसराय भी अपना था और जनरल डायर भी.किससे करें शिकायत कहाँ जाकर रोयें;हाकिम के हम है मारे, काजी ने हमको लूटा.
                मित्रों,५ जून जो सम्पूर्ण क्रांति दिवस भी है;की आधी रात को नेहरु-इंदिरा के वारिशों के आदेश पर अचानक सत्ता ने एक साथ हजारों निहत्थे लोगों की अभिव्यक्ति और जीने के अधिकार पर हमला बोल दिया.अचानक आधी रात में रामलीला मैदान में बिना किसी पूर्व सूचना के निषेधाज्ञा लागू कर दी गयी.वहां बेखबर हो सो रहे हजारों अनशनकारियों पर जिनमें वृद्ध,महिलाएँ और बच्चे भी शामिल थे को बिना बाखबर किए बेरहमी से मारा-पीटा गया जिनमें से कई लोककल्याणकारी लोकतंत्र के हाथों शायद कालकवलित भी हो चुके हैं.अगर ऐसा नहीं है तो फिर सरकार बताए कि इस तालिबानी कार्रवाई के बाद लापता लोग कहाँ है?रहीम कवि ने १६वीं शताब्दी में ही ताकत के मद को सरल अभिव्यक्ति प्रदान करते हुए कहा था-कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाए;वा खाए बौराए नर वा पाए बौराए.गोया सत्ता की शराब का असर हर पार्टी पर होता है लेकिन कांग्रेस पर इसका असर कुछ ज्यादा ही होता है.कहने को तो यह दल हमेशा अपने आपको लोकतंत्र का सबसे बड़ा पैरोकार बताती रहती है लेकिन इसको हमेशा से अपने अलावा कोई और विचारधारा बर्दाश्त ही नहीं होती.ये लोग देश में चीन की तरह एकदलीय शासन की स्थापना करना चाहते हैं.विपक्षी पार्टी की राज्य सरकार के खिलाफ धारा ३५६ का दुरुपयोग कर सरकार गिराने का मंत्र इसे किसी और ने नहीं बल्कि खुद गाँधी के सर्वश्रेष्ठ शिष्य नेहरु ने केरल की नम्बूदरीपाद की सरकार को अपदस्थ कर दिया था.उसके बाद उनकी लाडली बिटिया के समय तो यह केंद्र सरकार के लिए रोजमर्रा का काम ही हो गया.
          मित्रों,कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व चाहता है कि लोग अपने मुंह पर टेप लगा लें और न तो कोई उसकी आलोचना करे और न ही शांतिपूर्ण तरीके से भी विरोध ही करे.कोई बोले भी तो सिर्फ उसके सुर में बोले.उसने बाबा रामदेव को अनशन करने से डंडे,आंसूगैस,आगजनी और गोलियों के बल तो रोका ही अब अन्ना को भी आँखें दिखा रही है.उसकी सरकार के सबसे बडबोले और बदतमीज मंत्री कपिल सिब्बल ने अन्ना को चेतावनी दी है कि वे जनता को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जागृत करने की कोशिश हरगिज न करें अन्यथा उन्हें भी रामदेव की तरह कुटाई का शिकार होना पड़ेगा और आप जानते हैं कि ये लोग ऐसा कर सकते हैं क्योंकि इनके पास शर्म नाम की चीज ही नहीं है.जब आदर्शवादी नेहरु ऐसा कर सकते हैं तो फिर सोनिया जी जो सत्ता नाम केवलम के बीजाक्षर मंत्र में अटूट विश्वास रखती हैं उनके लिए ऐसा करना कौन-सा मुश्किल है.आज के अघोषित आपातकाल के हालात को आप किस तरह से लेते हैं यह मैं नहीं जानता लेकिन मुझे तो परिस्थितियां फिर से १९७५-७७ वाली लग रही है.तब भी बापू के बंदरों ने सच बोलने,सुनने और देखने पर रोक लगा दी थी और आज भी ऐसा करके के प्रयास शुरू हो चुके हैं.अंतर सिर्फ इतना है कि इंदिरा ने सत्य का गला घोंटने के लिए प्रत्यक्ष रूप से देश में आपातकाल लगा दिया था और सोनिया परोक्ष रूप से ऐसा करने के प्रयास कर रही है.हे,लोकतंत्र की देवी इन लोगों को कभी क्षमा नहीं करना क्योंकि ये लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि ये क्या कर रहे हैं.
मित्रों,भारतीय लोकतंत्र की स्थिति इसकी स्थापना के बाद से ही अत्यंत बिडम्बनापूर्ण रही है.जिस कांग्रेस पार्टी ने देश में लोकतान्त्रिक शासन की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाई उसी ने लोकतंत्र को छठी से पहले ही मौत के मुंह में भी धकेल दिया.नेहरु युग में ही यह नवजात बीमार हो गया.लोहिया की रोज-रोज की नुक्ताचीनी से परेशान होकर सरकारी खर्चे पर पंचसितारा जिन्दगी जीनेवाले नेहरु की कांग्रेस ने उन्हें जेल की अँधेरी कालकोठरी में इतने लम्बे समय तक और कुछ इस तरह से बंद रखा कि आम आमआदमी की उम्मीद लोहिया की मौत के साथ ही उसी समय लम्बी बेहोशी में चली गयी.कितनी बड़ी बिडम्बना है कि कुछ इसी तरह का व्यवहार पाकिस्तान की सरकार ने प्रख्यात शायर फैज अहमद फैज के साथ किया और उनकी कैदी जिंदगी को पाकिस्तान ही नहीं भारत के बुद्धिजीवी भी श्रद्धा के साथ प्रतिवर्ष याद करते हैं लेकिन भारत में ठीक उसी तरह के सरकारी दमन के शिकार डा.लोहिया को उनके घोषित अनुयायियों ने भी भुला दिया है.तभी से लोक पर तंत्र हावी हो गया और लोकशाही सिर्फ नाम की रह गयी.बाद में इस सुधरे बाप की बिगड़ी बेटी इंदिरा ने इस अचेत की १९७५ में बेवजह आतंरिक आपातकाल लगाकर हत्या कर दी.
              मित्रों,तभी से हम इस मरे हुए लोकतंत्र को उसी तरह सीने से लगाए घूम रहे हैं जैसे बंदरिया अपने मृत बच्चे को कलेजे से चिपकाकर इस उम्मीद में घूमती रहती है कि कदाचित उसके ऐसा करने से उसका बच्चा जीवित हो जाए.लेकिन ५ जून की आधी रात को सोनियानीत कांग्रेस ने लोकतंत्र के पुनर्जीवित होने की सारी संभावनाओं पर तुषारापात करते हुए इसकी शवयात्रा ही निकाल दी.इस रात कथित रूप से दुनिया के सबसे बड़े (मेरे अनुसार सबसे बुरे) लोकतंत्र की राजधानी दिल्ली ने वही सब देखा जो १३ अप्रैल,१९१९ को जलियांवाला बाग़ ने देखा था.इस बार वायसराय भी अपना था और जनरल डायर भी.किससे करें शिकायत कहाँ जाकर रोयें;हाकिम के हम है मारे, काजी ने हमको लूटा.
                मित्रों,५ जून जो सम्पूर्ण क्रांति दिवस भी है;की आधी रात को नेहरु-इंदिरा के वारिशों के आदेश पर अचानक सत्ता ने एक साथ हजारों निहत्थे लोगों की अभिव्यक्ति और जीने के अधिकार पर हमला बोल दिया.अचानक आधी रात में रामलीला मैदान में बिना किसी पूर्व सूचना के निषेधाज्ञा लागू कर दी गयी.वहां बेखबर हो सो रहे हजारों अनशनकारियों पर जिनमें वृद्ध,महिलाएँ और बच्चे भी शामिल थे को बिना बाखबर किए बेरहमी से मारा-पीटा गया जिनमें से कई लोककल्याणकारी लोकतंत्र के हाथों शायद कालकवलित भी हो चुके हैं.अगर ऐसा नहीं है तो फिर सरकार बताए कि इस तालिबानी कार्रवाई के बाद लापता लोग कहाँ है?रहीम कवि ने १६वीं शताब्दी में ही ताकत के मद को सरल अभिव्यक्ति प्रदान करते हुए कहा था-कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाए;वा खाए बौराए नर वा पाए बौराए.गोया सत्ता की शराब का असर हर पार्टी पर होता है लेकिन कांग्रेस पर इसका असर कुछ ज्यादा ही होता है.कहने को तो यह दल हमेशा अपने आपको लोकतंत्र का सबसे बड़ा पैरोकार बताती रहती है लेकिन इसको हमेशा से अपने अलावा कोई और विचारधारा बर्दाश्त ही नहीं होती.ये लोग देश में चीन की तरह एकदलीय शासन की स्थापना करना चाहते हैं.विपक्षी पार्टी की राज्य सरकार के खिलाफ धारा ३५६ का दुरुपयोग कर सरकार गिराने का मंत्र इसे किसी और ने नहीं बल्कि खुद गाँधी के सर्वश्रेष्ठ शिष्य नेहरु ने केरल की नम्बूदरीपाद की सरकार को अपदस्थ कर दिया था.उसके बाद उनकी लाडली बिटिया के समय तो यह केंद्र सरकार के लिए रोजमर्रा का काम ही हो गया.
          मित्रों,कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व चाहता है कि लोग अपने मुंह पर टेप लगा लें और न तो कोई उसकी आलोचना करे और न ही शांतिपूर्ण तरीके से भी विरोध ही करे.कोई बोले भी तो सिर्फ उसके सुर में बोले.उसने बाबा रामदेव को अनशन करने से डंडे,आंसूगैस,आगजनी और गोलियों के बल तो रोका ही अब अन्ना को भी आँखें दिखा रही है.उसकी सरकार के सबसे बडबोले और बदतमीज मंत्री कपिल सिब्बल ने अन्ना को चेतावनी दी है कि वे जनता को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जागृत करने की कोशिश हरगिज न करें अन्यथा उन्हें भी रामदेव की तरह कुटाई का शिकार होना पड़ेगा और आप जानते हैं कि ये लोग ऐसा कर सकते हैं क्योंकि इनके पास शर्म नाम की चीज ही नहीं है.जब आदर्शवादी नेहरु ऐसा कर सकते हैं तो फिर सोनिया जी जो सत्ता नाम केवलम के बीजाक्षर मंत्र में अटूट विश्वास रखती हैं उनके लिए ऐसा करना कौन-सा मुश्किल है.आज के अघोषित आपातकाल के हालात को आप किस तरह से लेते हैं यह मैं नहीं जानता लेकिन मुझे तो परिस्थितियां फिर से १९७५-७७ वाली लग रही है.तब भी बापू के बंदरों ने सच बोलने,सुनने और देखने पर रोक लगा दी थी और आज भी ऐसा करके के प्रयास शुरू हो चुके हैं.अंतर सिर्फ इतना है कि इंदिरा ने सत्य का गला घोंटने के लिए प्रत्यक्ष रूप से देश में आपातकाल लगा दिया था और सोनिया परोक्ष रूप से ऐसा करने के प्रयास कर रही है.हे,लोकतंत्र की देवी इन लोगों को कभी क्षमा नहीं करना क्योंकि ये लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि ये क्या कर रहे हैं.

No comments: