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11.6.11

यदि मैं केंद्र सरकार में होता तो

ब्लॉग पर हम चन्द ब्लोग्गेर्स जो कुछ लिखते बोलते हों पर क्या बाबा रामदेव के अनशन के प्रति समाज में कोई गंभीर चिंता नज़र आती है ? पर चिंता नज़र नहीं आती , नज़र तो आते हैं कार्य । भले ही बाज़ार की चहलकदमी ज्यों की त्यों हो पर टीवी पर हर कोई उन्हीं की खबर जानने दौड़ रहा है और मन ही मन सोच रहा है की उनकी सेहत को विशेष क्षत्ति न पहुंचे । पर केंद्र सरकार लगभग खामोश है और यह खामोशी एक हादसा है ।
संभवतः पाश ने लिखा है ,
'हादसा यह नहीं की हादसा हुआ ,
हादसा यह है की सब खामोश क्यों हैं । '
मैं मानता हूँ कि अनशन हर समस्या का समाधान नहीं है पर क्या मान मनौवल का बस वही तरीका है जो रामलीला मैदान में दिखाया गया ?
अगर रामदेवजी आर एस एस या अन्य हिंदूवादी संगठनों से जुड़े हुए मान लिए जाएँ तो क्या इस देश क़ी प्राचीनतम संस्कृति के पोषक बहुसंख्यक हिन्दुओं क़ी उपेक्षा सिर्फ इसी लिए क़ी जाय कि वे सहनशील हैं ।
मैं तो समझता था कि कांग्रेस के पास सधे हुए राजनैतिक खिलाडी हैं ,पर अब संशय होता है । यदि मैं केंद्र सरकार में होता तो बाबा के साथ स्वयं सत्याग्रह पर बैठ जाता ताकि बाबा अपने लिए नहीं तो मेरे स्वास्थ्य के लिए अपना अनशन तोड़ दें । पर यहाँ तो ' लाठी भंजावन ' से अनशन तुडवाना चाह रहे हैं लोग ।

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