जून 2007 में लिखी हुई मेरी पोस्ट “महाकालेश्वर मन्दिर में धर्म के नाम पर…” (पूरा मामला समझने के लिये अवश्य पढ़ें) में इस प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग के ऑडिट के बारे में लिखा था। उस वक्त भी कई सनसनीखेज मामले सामने आये थे, और जैसी की आशंका व्यक्त की जा रही थी, आज तक उस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई। बहरहाल, ताजा मामला एक और बड़ी चोरी को सामने लेकर आया है।
असल में महाकालेश्वर मन्दिर के शिखरों को सोने के पत्तरों से मढ़वाया जा रहा है। इस कार्य में लगभग 16 किलो सोना लगेगा (जिसकी कीमत जाहिर है कि लाखों में ही होगी)। अब ये क्यों किया जा रहा है, यह तो महाकालेश्वर ही जानें, हो सकता है कि इतना खर्चा और कर देने से उज्जैन में सुख-शांति स्थापित हो जाये, या उजड़े हुए काम-धंधे फ़िर से संवर जायें। इस प्रकार के काम महाकालेश्वर में सतत चलते रहते हैं, पहले टाइल्स लगवाईं, फ़िर उखड़वाकर दूसरी नई लगवाईं, रेलिंग लगवाई, फ़िर उस पर पॉलिश करवाई, एक दरवाजा बनवाया, फ़िर तुड़वाया आदि-आदि (जाहिर है काम नहीं होंगे तो खाने नहीं मिलेगा, और जो 200 रुपये लेकर पैसे वालों को विशेष दर्शन करवाये जाते हैं उस कमाई की वाट भी तो लगानी है)।
खैर… शिखरों पर इस सोने के पत्तर को चढ़ाने के लिये चेन्नई से विशेष कारीगर बुलवाये गये हैं। कुछ समय पहले इन सोने के पत्तरों को शिखर पर मढ़ने के लिये तांबे के ब्रैकेटनुमा हुक बनवाये गये थे, जिनसे ये सोने के पत्तर उसमें फ़ँसाकर फ़िट किये जा सकें। अब जब सोने का काम करने वाले कारीगरों ने अपना काम शुरु किया तो पता चला कि तांबे के जो ब्रैकेट बनाये गये थे, वे तो गायब हैं ही, वरन उस काम के लिये जो तांबे की पट्टियाँ दान में मिली थीं वे भी गायब हो चुकी हैं। तांबे के आज के भावों को देखते हुए कुल मिलाकर यह घोटाला लाखों रुपये में जाता है। अभी पिछली अनियमितताओं की जाँच(?) चल ही रही है, और यह नया घोटाला सामने आ गया है। सोचिये कि यदि सभी बड़े मठ-मन्दिरों, मस्जिदों, चर्चों और गुरुद्वारों की ईमानदारी(?) से जाँच करवा ली जाये तो क्या खौफ़नाक नजारा होगा। हालांकि आम आदमी को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिये, क्योंकि जैसा कि मैंने पहले ही कहा है यह “चोरों को पड़ गये मोर” वाला मामला है, क्योंकि आज की तारीख में मन्दिरों में बढती दानदाताओं की भीड़ का नब्बे प्रतिशत हिस्सा उन लोगों का है जो भ्रष्ट, अनैतिक और गलत रास्तों से पैसा कमाते हैं और फ़िर अपनी अन्तरात्मा(?) पर पडे बोझ को कम करने के लिये भगवान को भी रिश्वत देते हैं...
अन्त में एक मजेदार किस्सा- हमारे पास ही में स्थित एक मन्दिर में कल रात ठंड का फ़ायदा उठाकर चोरों ने दानपेटी का ताला चटका कर लगभग पाँच हजार रुपये उड़ा दिये। सुबह धर्मालुओं(?) की एक मीटिंग हुई जिसमें गलती से मुझ जैसे पापी (जो साल भर में तीन बार रक्तदान के अलावा मन्दिरों में फ़ूटी कौड़ी भी दान नहीं करता) को भी बुला लिया गया। जब मैंने कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है, “पैसा जहाँ से आया था वहीं चला गया”, तो कई लोगों की त्यौरियाँ चढ़ गईं, तब मैंने स्पष्ट किया कि भाई लोगों, चोर जो पैसा ले गये हैं, वह खर्च तो करेंगे ही, कोई भी सामान खरीदेंगे उसमें अम्बानी बन्धुओं में से किसी की जेब में तो पैसा जाना ही है, यदि सामान नहीं खरीदेंगे तो दारू पियेंगे तब पैसा विजय माल्या की जेब में जायेगा…दिक्कत क्या है, उसी पैसे का कुछ हिस्सा घूम-फ़िर कर वापस मन्दिरों में पहुँच जायेगा… इसी को तो कहते हैं “मनी सर्कुलेशन”…
कुछ समय पहले इन्दौर में भी विश्वशांति के लिये(?) करोड़ों रुपये खर्च करके एक कोटिचण्डी महायज्ञ आयोजित किया गया था, विश्व में तो छोड़िये, इन्दौर में भी शांति स्थापित नहीं हो सकी है अब तक… और कुछ समय पहले एक महान प्रवचनकार के शिष्यों और आयोजकों के बीच चन्दा / चढ़ावा राशि के बँटवारे को लेकर चाकू चल गये थे, धर्म की जय हो, जय हो…अधर्म का नाश हो, नाश हो…
सुरेश चिपलूनकर
http://sureshchiplunkar.blogspot.com
9.2.08
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में लाखों रुपये का तांबा चोरी
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1 comment:
सुरेश भाऊ,खतर-खतर-खतरनाक गोष्ट काढली आहे । लोकांना प्रेरणा घ्यायला पाहिजे कि रिपोर्टिंग कशी आणि काय करायचे . सगळे लोक भॊभड़ी चे नसतात.....
साधु-साधु.....
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