Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

8.2.08

दारू बाजी के तमाम नुस्खे

दारू कि खासियत ही है यसवंत जी जो पीता है वो तो सत्ता के सारे नज़ारे देखता है यू ही जरा गौर से देखे तो एक ही टेबल पर वामपंथी ,और दछिन्न पंथी साथ बैठे एक बहुरास्ट्रीय कंपनी कि दारू चला रहे है भले टेबल के उस पार मन मी न्युक्लिएर डील चल रही हो इससे फर्क ही क्या पड़ता है देश कि जनता तो सेन्ट्रल है और अगर राज ठाकरे का कॉकटेल हो तो बिहारी और उत्तर प्रदेश के भैये फ्री कि दारू भला छोड़ सकते है ? एक यही तो मोका है जब केशरिया लाल हो जाता है .कामरेड तो कहते ही है कि थोडा रंग क ही तो फर्क है वो भी दारू से धुल जाता है कितना अच्छा लगता है कि सब एक ही रंग में रंगा हुआ खतरा किडनी वाले का हो तो आप भी भाग कर नेपाल चले जाना सब नोर्मल हो जाएगा

1 comment:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

देखो भाई अक्कल की बात नहीं निकालने का इदर,देखा ना कितना बुलगुल बात चल रएली है...