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4.2.08

वक्त संभलने का...


ज़माना आज नहीं डगमगा के चलने का
सँभल भ़ी जा कि अभी वक़्त है सँभलने का

ये ठीक है कि सितारों पे घूम आये हम
मगर किसे है सलीक़ा ज़मीं पे चलने का

फिरे हैं रातों को आवारा हम, तो देखा है
गली-गली में समाँ चाँद के निकलने का

हमें तो इतना पता है कि जब तलक हम हैं
रिवाज-ए-चाक गिरेबाँ नहीं बदलने का

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