आशेंद्र सिंह की इस पोस्ट को मैं खत्म कर उसी जगह पर यह लिखना और कहना चाहता हूं कि अखबारों के संस्करणों में जो गल्तियां होती हैं, उसको निकालने का मंच नहीं है भड़ास। हम मीडिया से जुड़े लोग हैं और मीडिया में काम करते हुए हमसे कभी कभार गल्तियां इसलिए हो जाती हैं क्योंकि गलती आदमी से ही होती है, कंप्यूटर से नहीं। इसलिए हम नहीं चाहते कि यहां गल्तियों को हाइलाइट करके किसी मीडियाकर्मी साथी की नौकरी से खेलें। आइंदा से मैं सभी भड़ासियों से चाहूंगा कि वो अपने दिल की भड़ास निकालें, न कि अखबारों में छपने वाली गल्तियां गिनाये। गल्तियां गिनाने के लिए और भी ढेर सारे ब्लाग हैं। भड़ास उसका मंच नहीं है। उम्मीद है आशेंद्र जी अन्यथा नहीं लेंगे और इस सलाह को हृदय से स्वीकार करेंगे। अगर आशेंद्र ने भड़ास की पिछली पोस्टें पढ़ी होतीं तो यह स्थिति नहीं आती क्योंकि बहस के बाद यह पहले ही भड़ासियों ने तय कर लिया है कि जल में रहकर मगर से बैर करने की नीति उचित नहीं।
जय भड़ास
यशवंत
14.2.08
अखबार में छपने वाली गल्तियों का उल्लेख न करें
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1 comment:
दादा,आशिकेन्द्र भइया की उल्टी अगर किसी के कपड़े खराब कर सकती है तो आपने तो उनका तो मुंह ही चांप दिया ,अब देखिएगा कि कहीं नीचे से न निकल पड़े.....
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