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14.2.08

प्रेम के लिए दो मिनट का मौन

फागुन के पागल महीने में
हम चाह ही रहे थे गाना बसन्ती गीत
की आ गया

नए सांस्कृतिक रथ पर सवार वैलेंटाइन डे

अकेले नही आया है
प्रेम का ये त्यौहार
इसके ऑफर पैक में मिले हैं
रोज डे ,फ्रेंडशिप डे और जाने क्या क्या ??

अब तो लगता है
की जैसे इसके आने से पहले
बिना प्रेम के रह लिए हम हजारों साल
वसंतोत्सव ?
जैसे वैलेंटाइन डे कोई उपनिवेश
पीले वस्त्रों में लिपटा सौंदर्य
मानुस प्रेम
सरसों के खेत
जैसे बीते युग की कोई बात

इन्हे तो भुलाना ही था हमें
क्यूंकि वसंतोत्सव को
सेलिब्रेट नही कर सकते
कोक और पिज्जा के साथ
ठीक नही लगता ना

सुना तुमने
वैलेंटाइन डे आ रहा है
टीवी चॅनल पढेंगे
उसकी शान में कसीदे
और कहेंगे
देश के लोगों खरीदो
मंहगे उपहार
क्यूंकि वही होंगे तुम्हारे प्रेम के यकीन
भावनाएं तो शुरुआत भर होती हैं
ओछी और सारहीन

१४ फरवरी को अचानक याद आयेगा प्रेम
और हम नोच डालेंगे बगिया के सारे फूल
घूमेंगे सडकों, बाजारों, परिसरों में
जहाँ भी दिखें प्रेमिकाएँ
जो थीं १३ तारिख तक महज लडकियां

मुर्दा संगठनों में नयी जान फून्केगा
वैलेंटाइन डे
निकल पड़ेंगे सडकों पर उनके लोग
लाठी डंडों और राखियों से लैस
जब उन्हें दिखाई देंगे
अपने ही भाई -बहन
दूसरों की गाड़ियों पर चिपके हुए
तो वे निपोरेंगे खीस
और दिल ही दिल में स्वीकारेंगे
परिवर्तन की बात
सोचता हूँ की अगर ये है प्रेम का प्रतीक
तो क्यों लाता है आँगन में बाजार
जीना सिखाता है सामानों के साथ

डरता हूँ
इस अंधी दौड़ में बसंतोत्सव
की तरह
हम मांग ना लायें होली और दीवाली के भी विकल्प

इस कठिन समय में जब प्रेम
आत्महंता तेजी से उतर रहा है
भावना से शरीर पर

आइये करें थोडी सी प्रार्थना
ताकि प्रेम बचा रहे
हमारे भीतर की गहराइयों में
ताकि हमें रखना न पड़े
प्रेम के लिए दो मिनट का मौन

3 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी, बड़ा भयंकर लेखन है इसी तरह बगिया में बैठे उल्लुओं को उड़ाते रहो......

Siddharth Kumar said...

Bahut badhiya
Mogembo Khush Hua

Siddharth Kumar said...

Bahut badhiya
Mogembo Khush Hua