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12.2.08

ग़रीबी के पैमाने

बसपा सुप्रीमो और उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती इन दिनों खूब सभाएं और दौरे कर रहीं हैं। हर जगह वे एक ही राग अलापती हैं कि अगर केन्द्र में हमारी सरकार आई तो दलितों को उनके अधिकार तो मिलेंगे साथ ही ग़रीब सवर्णों को आरक्षण देने के लिए संविधान में संसोधन किया जाएगा। बहन जी ! ग़रीबों का वोट लूटने के लिए गत 58 सालों से यही फार्मूला इस्तेमाल किया जा रह है , लेकिन ग़रीब तब से अब तक ग़रीब ही हैं। हर पार्टी चुनाव से पहले यही कहती है , लेकिन सत्ता में आने के बाद वह ग़रीबों का खून चूसना शुरू कर देती है। फिर बात चाहे प्रदेश स्तर की हो या राष्ट्रीय स्तर की। मज़े की बात तो यह है कि अभी तक देश मे ग़रीबी के व्यवहारिक पैमाने ही नहीं बन पाए। ग़रीब कौन है ? वह जिसके पास पीला कार्ड है अथवा वह जो ज़िंदगी भर ज़िंदगी को ढोता है। असल ग़रीबों का तो नाम भी मतदाता सूची में नहीं होता, अगर होता भी है तो उनका वोट कोई और डालता है जैसे उनके पीले कार्ड का लाभ कोई और लेता है। फिर ये शफेदपोश लोग किस ग़रीब की बात कर रहे हैं । चुनाव आते ही सभी पार्टियों को ग़रीबों की याद आने लगती है। चुनाव के बाद पांच साल तक इन्हें भाषणबाज़ी और कमाई से फ़ुरसत नही मिलती। तब इन्हें झक मराके ग़रीबों की याद नहीं आती।
विश्व की भीषण त्रासदियों में भोपाल गैस त्रासदी का नाम शुमार किया जाता है। इस त्रासदी के शिकार लोगों पर काम करते हुए मैंने पाया कि इस त्रासदी से पीड़ित असल लोग आज भी इस के दुष्परिणाम भुगत रहे हैं। उन्हें न मुआवज़ा मिला न इलाज़। जब उन्होने मुआवज़े के लिये दावा पेश करना चाहा तो सरकारी नुमाइंदों ने कहा पहले ये साबित करो कि तुम पीड़ित हो, अपना राशन कार्ड या कोई और कागज़ात ले कर आओ । जिस रात ये त्रासदी हुई लोग अपनी जान बचाने के लिये भाग रहे थे न की राशन कार्ड संभल रहे थे ! पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी ये उस रात के दुष्परिणाम भुगत रहे हैं। इन गरीबों की सुनवाई कहीं नहीं है अब तो इन का धर्म, जति सब कुछ ग़रीबी है। क़मोवेश इसी तरह के अनुभव गुजरात में भूकंप पीडितों के बीच काम करते हुए सामने आये। गुजरात के ग्रामीण इलाक़े आज भी पटेल और महाजनी संस्कृति की लपेट में हैं। उत्तरप्रदेश या अन्य राज्यों के हालत भी कुछ अलग नहीं है। फिर बहन जी किन ग़रीबों की बात कर रहीं हैं ? इस बात को तो वे भी भली तरह जानतीं हैं की अगर ग़रीबी ख़तम हो गयी तो एक चुनावी मुद्दा ख़तम हो जाएगा।
-आशेन्द्र सिंह singh.ashendra@gmail.com

1 comment:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

प्रभु,क्या बात है इतनी बड़ी बात को इतने फ़ुसफ़ुसे ढंग से कह रहे हो क्या पेट्रोल खत्म हो गया है जो आग नहीं दिख रही है....
जय जय भड़ास